सोमवार, 31 दिसंबर 2012

चुप्पी का इशारा कभी


चुप्पी का इशारा कभी, किया था सनम ने 
लबों पे ठहरी है, ख़ामोशी आज भी 

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

रविवार, 30 दिसंबर 2012

मेरी चाहत कि तुझे


मेरी चाहत कि तुझे सांसों से छू लू सनम ।
मेरी तमन्ना कि तुझे आंखों से पी लूं सनम ।।
जाने फ़िर, आयेंगे ये लम्हे कौन जाने, 
इस एक पल में सारी ज़िंदगी को जी लूं सनम ॥

-अंकित  कुमार 'नक्षत्र'

अश्कों मे खोना चाहता हूं



अश्कों मे खोना चाहता हूं ।
मै दिल से रोना चाहता हूं ।
जो दाग दिये मैने तुझको,
मै उनको धोना चाहता हूं ।
जागा हूं गहरी निद्रा से,
ना अब मै सोना चाहता हूं ।
तेरे दिल की गलियों में मै,
छोटा सा कोना चाहता हूं ।
तेरे गम की परछाई का,
ना बोझा ढोना चाहता हूं । 
तुझको समेट आंचल मे मै,
सम्पूर्ण होना चाहता हूं ।

-अंकित कुमार 'नक्षत्र '

भरी महफ़िल में


भरी महफ़िल में नहीं सज पाए जो 'नक्षत्र' 
आज अपने प्यार की मुलाकातों में सजे 

-अंकित कुमार 'नक्षत्र' 

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

सारे शहर की गलियों में


सारे शहर की गलियों  में,  छानी  ख़ाक जिसके  लिए 
क्या मालूम था वो 'नक्षत्र' मेरे दिल में छुपा बैठा है 

-अंकित कुमार 'नक्षत्र ' 

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

मेरे हाथों मे



मेरे हाथों मे जो तेरा हाथ आ गया ,
जाने कैसा सुरूर इस दिल पे छा गया ।
तमन्ना थी जाने की बहुत दूर लेकिन ,
लौटकर मै वापस तेरे दर पे आ गया ।
इंतेहां जो आज तूने की मौहब्बत की ,
इक अज़नबी अहसास मेरे दिल मे समा गया ।
नही छू पाया कोई मेरे दिल के तार, मगर 
पल भर मे ही तू मुझे अपना बना गया ।
सदियों से थी अंधेरी गलियां मेरे दिल की ,
तू आज़ अमावस रात में दिवाली मना गया ।
ना आते थे परिंदे भी चौखट पे मेरी,
तू फ़िर से मेरा उज़डा हुआ जहां बसा गया ।

-अंकित कुमार 'नक्षत्र' 

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

खंज़र उठाने की ज़रुरत



खंज़र उठाने की ज़रुरत नही है तुम्हे ,
ये बेरुखी ही काफ़ी है, मुझे कत्ल करने के लिए ।
रकीबों के संग तूने शब गुजार दी,
क्यों दिया ये गम तूने, मुझे बेवक्त मरने के लिए ॥

-अंकित कुमार नक्षत्र 

आज दिन है कुछ खास,



आज दिन है कुछ खास,
ना अब होना तू उदास ।
मै करूंगा तुझसे प्रेम ,
जो आयेगा तुझे रास ।
तुम आओगे मेरे दिल मे,
लिए बैठा हूं मै आस ।
एक कोना मेरे लिए भी,
तेरे दिल में होता काश ।
फ़ैल जाता तेरे दिल में,
मेरे प्रेम का प्रकाश ॥

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

अब तो चिराग संग शब मे



अब तो चिराग संग शब मे जलने लगे हम ।
पाकर गम-ए-मौहब्बत फ़िर से पिंघलने लगे हम ॥
कभी ढूंढने से भी घर नही मिलता था हमे, 
क्यों आज अपने घर से दूर निकलने लगे हम ॥
कभी डूबे रहते थे नासूर-ए-जलालत में,
क्यों पाकर जरा सा दर्द आज फ़िसलने लगे हम ॥
दर्द-ए-जुदाई की याद फ़िर से आई तो,
पर कटे पंछी की तरह मचलने लगे हम ॥
बिछडकर तुमसे हालात कुछ ऐसे हुए,
डूबते हुए सूरज की तरह ढलने लगे हम ॥

यूं तो हम कभी मजबूर ना थे



यूं तो हम कभी मजबूर ना थे चलने के लिए ।
तूने किया काम ऐसा बेबस हुए संभलने के लिए ।
हालत तेरी मौहब्बत ने कर दी कुछ इस तरह,
पंछी हो गया बैचेन, पिंजरे से निकलने के लिए ॥

- अंकित कुमार नक्षत्र 

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

उम्मीदों का चिराग अभी बुझा नही है



उम्मीदों का चिराग अभी बुझा नही है ।
तेरे दिल से मेरा दिल अभी उलझा नही है ।।
तुम क्या जानोगी, ये दिल की बाते है ।
यहां हार-जीत नही होती, ये जुआ नही है ॥ 
दिल तुम्हारा मुझसे करता है दिल्लगी, 
शायद तुम्हे प्यार मुझसे हुआ नही है ॥
कट जाता जिन्दगी का सफ़र आहिस्ता, मगर,
मेरे संग तेरे दिल की दुआ नही है ॥
सारे गमों को मैने अपने सीने में समा लिया ।
मेरा दिल तो दरिया है, कुआ नही है ।

                                                            -अंकित कुमार 'नक्षत्र' 

खुशियों की बहारें आई है



खुशियों की बहारें आई है।
कुछ ठंडी फ़ुहारे आई है ॥
मेरा तन-मन उसमें भीग गया ।
मै नज़रे लडाना सीख गया ॥

कितनी सुन्दर उसकी काया ।
कैसी विचित्र उसकी माया ॥
जब-जब भी वो मुस्काती है ।
बागों में बहारें आती है ॥

दिल उसकी ओर खिंचा जाता है ।
मन छित्र-भित्र हो जाता हैं ॥
दिल की चाहत देखूं उसकों ।
मन की चाहत सोचूं उसकों ।।

कितनी मोहक मुस्कान है वो ।
कितनी सुन्दर पहचान है वो ॥
सांसों में मेरी समा गई ।
मेरे दिल का अरमान है वो ॥

-अंकित कुमार 'नक्षत्र' 

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

प्रेम-पत्र -3

पलक,
        आजकल मेरा मन बहुत अधिक विचलित रहने लगा है । तुम्हारे-मेरे बीच मे जो ये दूरी है, मै इसे मिटा देना चाहता हूं । तुमसे मिलने की तृष्णा राई से पहाड बन चुकी है । पल-प्रतिपल तुम्हारे विषय में विचार करके मेरे अन्तर्मन की क्लान्तता बढती जा रही है । वास्तव में ही इंसान बहुत बेबस और निर्बल होता है । शायद मै भी उसी अवस्था में हूं । मै अपने स्वयं के विचारों को नियंत्रित नही कर पा रहा हूं । कभी-कभी इच्छा होती है कि तुम मेरे निकट, इतने निकट आ जाओ कि ये दुनिया हम दोनों तक ही सिमट जाए या फ़िर हम दोनों इस जहां से इतनी दूर चले जाए जहां परिंदे भी पर ना मार सके ।
        मै तुम्हे किसी बंधन में नही रखना चाहता हूं। मै तो उस अदृश्य बंधन की कल्पना कर रहा हूं जो हमे परस्पर बांधे रखे, तुम चाहकर भी मुझसे दूर ना जा सको । मै जानता हूं कि तुम्हारी बेचैनी भी कम नही है। तुम्हारे मन मे भी मुझसे मिलने की वही तडप, वही कशिश मौज़ूद है, जो मेरे दिल मे, है । मुझे उस क्षण की प्रतीक्षा है जब समय भी हमारे बीच मे दूरी नही बना पाएगा ।

………प्रतीक्षारत
तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा 'नक्षत्र'

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

प्रेम -पत्र 2

स्वीटी,
        जब आंखे तेरे दिए हुए अश्कों से सराबोर हो गई, जब दिल तेरे दिए हुए जख्मों से लहुलूहान हो गया, जब कर्णपल्लव तेरे व्यंग्य-बाणों से आहत हो गए , जब तेरे नाम को इन होठों पर लाने का साहस ना रहा मुझमे , तब भी इस दिल से तेरे लिए दुआ ही निकली ।
        लेकिन  अगर तुम मुझसे दूर रहकर ही प्रसन्न हो, तो मै क्यों तुम्हारे जीवन मे विष घोलने का घृणित कार्य करुं । मुझे तुम्हारे जीवन मे बलपूर्वक प्रवेश करने का कोई अधिकार नही है । मै उन निकृष्ट प्रेमियों मे से नही हूं जो धोखा दिए जाने पर अपने प्रेमी का अहित कर बैठूं ।
        किंतु क्या सिर्फ़ नाराज़गी की वजह से संबंधो को समाप्त किया जा सकता है ? मै स्वीकार करता हूं कि मैने कुछ ऐसी बाते कह दी थी जो अभी तक तुम्हारे अन्तःकरण मे शूल की भांति चुभ रही होंगी ।किंतु मैने वो सब क्रोध के वशीभूत होकर कहा था । क्रोध में व्यक्ति अपने दिल की बात नही कहता, वह केवल दूसरे के दिल को पीडा देना चाहता है । परंतु संबंध समाप्त करना इतना सरल नही है, जितना तुम्हे प्रतीत हो रहा है । क्या तुम कभी मेरे साथ व्यतीत किए हुए उन प्रेमपूर्ण क्षणों को अपनी स्मृति से विस्मृत कर पाओगी ? तुम शायद कर भी सकों, लेकिन मेरे लिए तो ये असंभव है । मै तुमसे दूर जाने के बारे में सोच भी नही सकता । इस विचार मात्र से ही मेरा मन विचलित होने लगता है । मै स्वयं को संभालने के लाख प्रयत्न करता हूं, किंतु सफ़ल नही हो पाता हूं ।
        मुझे तो अभी तक यही अहसास था कि वो प्रेम का ही बंधन है जो हम दोनो के दिलों को बांधे हुए है और जो हमे एक-दूसरे से जुदा नही होने देता । लेकिन ये सोचना शायद मेरी भूल थी । अगर वास्तव में प्रेम था, तो नाराज़गी की वजह से घृणा करने का कोई औचित्य नही है  । अगर तुम्हे मुझसे प्रेम होता, तो तुम शब्दों से आहत होकर दुःखी होती, ना कि नाराज़ होकर इस तरह का व्यवहार करती । मै भी जाने क्या-क्या सोचने लगा ? मै तो आज भी यही दुआ करता हूं कि जहां भी रहो, खुश रहना ।


"ना खिल पाया कोई फूल गुलशन में मेरे, 
                          काँटों से उलझती रही अंकित की आरज़ू "

                                                                                                     -तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा विजय

हाथों मे हाथ डालकर

हाथों मे हाथ डालकर जब चले थें हम,
सारे जमाने की नजरों से ढले थे हम ।
सही थी जलालत-औ-रुसवाई सारे जहां की ,
फ़िर भी इरादे से अपने ना हिले थे हम ।
जुदा करने की हमें लाख कोशिशों के बाद भी,
शहर की पुरानी गलियों मे फ़िर मिले थे हम ।
सारे खंजर हो गए थे खून के प्यासे ,
बचकर काफ़िरों से किसी तरह निकले थे हम ।
बडी बेरहम है दुनिया ये जालिमों की।
जख्मों को अपने किसी तरह सिले थे हम ।
बडे बोझिल थे जुदाई के वो लम्हे, मगर
मिलने के बाद फ़ूलों की तरह खिले थे हम ॥

रविवार, 9 दिसंबर 2012

भूलकर सबको बना



भूलकर सबको बना, दिवाना कुछ ऐसा,
पर आखिर तूने बना दिया, बेगाना कुछ ऐसा,
यादों से भी तेरी मै हो गया महरूम,
किस्मत ने बुना ताना-बाना कुछ ऐसा ।
एक झलक तेरी पाई, दुश्मन सारे लोग हुए,
जमाना भी हो गया सयाना कुछ ऐसा ।
दर्द-ए-इंतेहा हुई ,आंसूं ना बहा सके,
तूने मेरे संग किया कारनामा कुछ ऐसा ।
बाते सदियों लंबी थी, जबां काट ली तुमने,
जाने कहां से ढूंढा तुमने, बहाना कुछ ऐसा ।
दिल को किया लहुलूहान, जान लेकिन छोड दी,
लगाया था तुमने क्यों निशाना कुछ ऐसा ।

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

गुनाह-ए-अज़ीम

गुनाह-ए-अज़ीम हो गई मौहब्बत अब तो ।
आने लगी है याद कयामत अब तो ।।
ना जाने किसके पहलू में छिपकर रोएंगे हम,
सारे शहर ने की है जलालत* अब तो ॥

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* जलालत = बेइज्ज़ती


शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

ना तीर का कोई छोर था


ना तीर का कोई छोर था
ना ही दिल का कोई छोर था ।
वो तीर दिल में चुभाते चले गए ।
हम दर्द को दिल में समाते चले गए ।।
उनकी तमन्ना हमारे चेहरे पर दर्द आए ।
जकड जाए हम, आंखे सर्द हो जाए ॥
दर्द खंज़र से नही, उनकी बेरुखी से था ,
मगर क्या करे 'अंकित' को प्यार भी उन्ही से था ॥
वो इक बार मुस्कुरा कर तो कहते हमसे,
आंसूं तो क्या, दर्द-ए-लहू बहाते दिल से ॥
तमन्ना उनकी-औ-हमारी दिल में ही रह गई ।
हम मुस्कुराते रहे, वो देखती रह गई ॥

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

क्यों, आखिर क्यों



एक शहर ,
सब अंजान,
बनते है ये दिलवाले,
लेकिन नफ़रत ओढे हुए।
क्यों,
आखिर क्यों,
क्या यही दस्तूर है इस शहर का ।

एक मोहतरमा,
कुछ जानी-पहचानी,
बाते करती है आंखों से,
लेकिन नज़रे हिकारत भरी ।
क्यों,
आखिर क्यों,
क्या यही शउर है इस शहर का ।

एक दीवाना,
कुछ बेगाना सा,
मुस्कान को लपेटे हुए,
और लोग उसे पत्थर मारे ।
क्यों,
आखिर क्यों,
क्या यही नासूर है इस शहर का ।

रविवार, 2 दिसंबर 2012

तुम हो मेरी प्रेरणा


तुम हो मेरी प्रेरणा, तुम मेरा विश्वास ।
पाकर तुम्हे जागी है, जीने की इक आस ॥
यूं तो लाखों लोग यहां मिले मुझको लेकिन ।
जगह तुम्हारी है इस दिल में सबसे खासमखास ॥
गलियां भी अंधेरी थी, अंधेरे थे रास्ते ।
तुम्हे देखकर मिल गया मुझे नया प्रकाश ॥
इच्छा यही विश्राम करूं तेरी जुल्फ़ों की छांव में ।
प्रेम करूंगा मै तुमसे, बिना किसी अवकाश ।।
मिली हो जबसे तुम, मुझे मिल गया जीवन ।
है साक्षी इस बात के धरती और आकाश ॥

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

प्रेम पत्र -1



        'पलक', तुम्हारा प्रेम देखकर मै तडप उठता हूं । कितना यकीन, कितना अधिक विश्वास है तुम्हे मुझ पर । मै तो मात्र यही सोचकर सहम जाता हूं कि अगर कभी तुम्हे मुझसे दूर रहना पडा, तो कैसे रह पाओगी तुम ? तुम्हारी मनोदशा क्या होगी ? शायद उसके बाद तुम किसी पर विश्वास ना कर पाओ ।मै तुमसे हमेशा यही कहता हूं "मुझसे इतना प्रेम ना करो पलक, मै उसके योग्य नही हूं ।" किंतु, आज तुम्हारे प्रेम के आधिक्य के कारण ही मै खुद को बेबस महसूस कर रहा हूं । मुझे स्वयं से अधिक तुम पर विश्वास हो चला है । मैने तुम्हारा दिल दुखाया, मात्र यह सोचकर कि तुम मुझसे घृणा करो । लेकिन मै शायद वही भूल गया था, जो स्वयं कहता हूं कि '' अगर कुछ घटनाओं के कारण आप अपने प्रेमी से घृणा करने  लगो तो इसका अर्थ यही है कि वहां प्रेम था ही नही, घृणा दबी हुई थी कहीं गहरे में, जो थोडा सा मनमुटाव होने पर प्रकट हो गई है । '' परंतु तुम्हारे प्रेम ने मुझे सत्य कहने को विवश कर दिया, मै स्वयं को और अधिक नही रोक पाया और तुम्हारे सम्मुख सब कुछ कह दिया '' हां, पलक हां, मै भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं जितना कि तुम मुझसे, बल्कि उससे भी कही ज्यादा । तुमसे मिलन की वही तीव्र उत्कंठा मेरे मन में भी रहती है, जो तुम्हारे मन में है। अब मै कुछ भी नही छिपाना चाहता , सब कुछ शीशे की तरह साफ़ कर देना चाहता हूं । किसी का डर नही है मुझे । मै तुम्हारा प्रेम स्वीकार करता हूं, पलक, स्वीकार करता हूं |

-तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा 'विजय'

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

तोड ना दूं यकीं तेरा


तोड ना दूं यकीं तेरा, इस डर से,
ना निकल पाया मै अपने घर से ।
तमन्ना-ए-मुलाकात-ए-आरज़ू लेकिन,
लौट गया वापस मै तेरे दर से ।
जाता हूं सहम मै दिल ही दिल में,
सोचता हू रिश्ता जोडना जब पर* से ।
जाता दूर तुमसे पल भर के लिए भी,
बिंध जाता सीना मेरा अंजान शर** से ।
नही चाहिये मुझे दौलत-औ-शौहरत,
मिल जाता सुकून फ़कत^ तेरी खबर से ।
जिंदगी जीने को वो पल ही काफ़ी थे,
जब तुमने जी भरके देखा मुझको नज़र से ।
रुसवाई-औ-बेवफ़ाई करो शौक से मगर,
ना कभी भी दूर करना अपने जिगर से ।
-  'अंकित'

------------
 *पर- पराया,  **शर- बाण, तीर, ^ फ़कत- केवल

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

दीये से रोशनी की


दीये से रोशनी की चाहत है फकत 
सूरज की किरणों से मुहब्बत नहीं मुझे 
प्यार मेरा सिमट गया महबूब तक मेरे 
सारे जहां की अब ज़रूरत नहीं मुझे 
- 'अंकित '

रविवार, 11 नवंबर 2012

अश्कों को पलकों से


अश्कों को पलकों से निकलने की चाहत भी नही है ।
तेरे लिए मेरे प्यार की, कीमत भी नही है ॥
जो छूट गए पलकों से, तो जाएंगे कहां
उस दर्द मे सिमटने की अब आदत भी नही है ॥


सोमवार, 5 नवंबर 2012

रविवार, 4 नवंबर 2012

शनिवार, 3 नवंबर 2012

हम दिल लगा बैठे


हम दिल लगा बैठे उनकी तस्वीर देखकर ।
खुदा जाने क्या देगा मेरी तकदीर देखकर ।।
मांगी है मन्नते हज़ार पाने की उनको ,
उन्हें शायद आ जाए प्यार, मेरी तहरीर देखकर ।।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

जब मेरा दिल धड़कता है


जब मेरा दिल धड़कता है ,
तेरी ही याद आती है । 
मेरी धड़कन को सुनते ही ,
क्यों मुझसे रूठ जाती है। 
तमन्ना एक है दिल में ,
 कि तुझको पा लू कैसे भी ,
तू ना ओझल हो नजरो से ,
ये साँसे छूट जाती है । 

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

जब मौसम कही, कोई सुहाने होते है



जब मौसम कही, कोई सुहाने होते है ।
दिल मे तेरे प्यार के तराने होते है ।।
अगर कभी दीदार होता है तुम्हारा ।
हम तेरे खंजर के निशाने होते है ॥
चाहे हम को कर दो तुम दूर खुद सें ।
हम फ़िर भी तेरे प्यार के दीवाने होते है ॥
पहचान तो इक अरसे से तुमसे मेरी, लेकिन
हम आज भी गलियों मे तेरी अंजाने होते है ॥

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

अश्क हो रहे है बेकाबू आजकल


अश्क हो रहे है बेकाबू आजकल 
जाने किस तरह पलकों में छिपा रखा है 
इक बेदर्द की यादो को आज भी 
हमने  दिल के आईने में सज़ा रखा है 

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मेरी कब्र के फ़ूल



मेरी कब्र के फ़ूल उनके हाथों से सज़ाए ना गए
दर्द ऐसा दिया उन्होने, कि वो हमसे भुलाए ना गए
सारा शहर उमड पडा था देखने को मुझे ,
फ़कत1 वो ही मेरी मय्यत2 पे बुलाए ना गए
-----------------
1. फ़कत = केवल  2. मय्यत = जनाज़ा 

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

इन आंखो से



इन आंखो से उसे पाने का ख्वाब मिटा दे।
वो उगता हुआ सूरज है, तुम डूबता जहाज़ ॥

उनकी नाराजगी के डर से



उनकी नाराजगी के डर से हम इकरार ना कर पाए ।
छुप-छुप के भी उनको कभी हम प्यार ना कर पाए ॥
जूस्तजू-ए-जान-ए-मन, माफ़िक तूफ़ानों के ।
फ़िर भी उनसे इश्क का इज़हार ना कर पाए ॥
बेकरारी से हमारा दम निकलता है मगर ,
आज तक भी उनकों बेकरार ना कर पाए ॥
जब भी हाथ उनका उठा वार करने को,
सीना अपना दिखा दिया, इन्कार ना कर पाए ॥
हर गली-कूचे मे हम बदनाम है लेकिन,
उनकों रुसवा हम सरे-बाज़ार ना कर पाए ॥

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

क्यों फ़िर से तू मुझे, इस तरह तडपाने लगा



क्यों फ़िर से तू मुझे, इस तरह तडपाने लगा ।
क्यो अपनी प्यास मेरे, अश्कों से बुझाने लगा ॥
आंखे बरसती रहती है, दिन-रात याद में ।
कि आंसुओ मे भी अब तेरा, चेहरा नज़र आने लगा ॥
आना तो चाहा था, तेरी ही गलियों में ।
ना जाने मुडकर क्यों, किस ओर मै जाने लगा ॥
जाम को छूते ही, कांप जाते है मेरे होठ ।
ये कैसा नशा आज ,'अंकित' पे फ़िर छाने लगा ॥

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

छोड दे सादिक, आज जाने दे मुझे ।



छोड दे सादिक, आज जाने दे मुझे ।
मेरे यार की खबर अब लाने दे मुझे ।।
वो भूली है सब कुछ मेरी जुदाई से ।
आज उसकी याद मे मिट जाने दे मुझे ।।
बेवफ़ा नही है वो, ये आज समझा हूं ।
तसव्वुर मे अपनी उसे लाने दे मुझे ॥
तमन्ना है 'अंकित' की फ़कत, उसको पाने की ।
फ़िर से उसकी बाहों मे खो जाने दे मुझे ॥

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

एक तू ही काफ़ी है



तमन्ना नही अब किसी और मूरत की मुझे ।
एक तू ही काफ़ी है मंदिर मे सज़ाने के लिए ॥
जमाने भर को हमसे नफ़रत है, तो क्या गम है ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे मौहब्बत सिखाने के लिए ॥
घर फ़ूंक के मेरा, जमाना खुश है तो क्या हुआ ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे दिल मे बसाने के लिए ॥
इस शहर नें दोज़ख बना दी जिन्दगी मेरी ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे जन्नत दिखाने के लिए ॥
सारी छते टूट गई है, आज़ मेरे लिए ।
तेरा आंचल ही काफ़ी है, मुझे सर छुपाने के लिए ॥

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

जब तुम मुझसे मिलती हो ।


जब तुम मुझसे मिलती हो ।
मेरि अंखियों में खिलती हो ॥
नज़रे नज़रों से मिलती है ।
फ़ूलों में कलियां खिलती है ॥
आंखों को सुकून आ जाता है ।
मुझपे सुरूर छा जाता है ॥
मै तुझ में ही खो जाता हूं ।
तेरी ओर मुडा चला आता हूं ॥
ये लब कुछ कहना चाहते है ।
तुझे देख मौन हो जाते है ॥
जाने कब राते होती है ।
आंखों से बाते होती है ॥
तुम जाने को जब कहती हो ।
मुझपे उदासी छा जाती है ॥
मिलने का वादा करती हो ।
मुस्कान मुझे छू जाती है ।।

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

राधा-कृष्ण



माधुर्य वाणी, चंचल चितवन,
राधा कृष्णा से मिली मधुबन ।
थे नेत्र सजल-औ-अश्रुपूर्ण,
श्रीकृष्ण देख हुए भाव-विहल ।
राधा के मुख पर देखी थी,
कृष्ण नें वियोग की पीडा आज ।
उनको भी स्मृति होने लगी,
राधा के संग प्रेम-क्रीडा आज ।
अंतर्मन बांसुरी में खोकर,
गोपियों के संग वो करते रास ।
लेकिन कृष्णा भंवरों की तरह,
मंडराते राधा के आस पास ।
राधा को वियोग सहना पडा,
फ़िर समय आया ऐसा विकट ।
राधा की प्रार्थना, कृष्णा से,
हो जाओ मेरे सम्मुख प्रकट ।

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

फ़ूलों में अभी कुछ सुहास बाकी है ।



फ़ूलों में अभी कुछ सुहास बाकी है ।
आने की उनके कुछ आस बाकी है ॥
पीने दे साकी जी भर के मुझे ।
मेरी अभी आखिरी प्यास बाकी है ॥
धुंधले हो गये है यादों के रंग भी ।
ना इस जिंदगी मे कोई रास बाकी है ॥
आने की उनके उम्मीद है, इसलिए,
जीवन मे मेरे कुछ सांस बाकी है ॥
कुछ देर ठहरा लो जनाजे को मेरे ।
आने वाला अभी भी कोई खास बाकी है ॥

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

अभी तो आखिरी इम्तिहान बाकी है



अभी तो आखिरी इम्तिहान बाकी है ।
उनका अभी आखिरी सलाम बाकी है ॥
भूल गये है हम जब सारी खुदाई को ।
होठों पर अभी भी उनका नाम बाकी है ॥
नही आयेंगे वो मय्यत पे मेरी ।
उनका शायद कोई इन्तकाम बाकी है ॥
पीने-औ-पिलाने का दौर भी चलेगा ।
ठहर जाओ दोस्तों अभी शाम बाकी है ॥
एक प्याला डाल देना छुपा के दोस्तो ।
फ़कत अपना आखिरी इक जाम बाकी है ॥
चला जाऊं जिंदगी से दूर मै लेकिन ।
आना उनका आखिरी पैगाम बाकी है ॥
जब नवाजेंगे वो, रुसवाई से मुझे ।
पाना ये आखिरी इनाम बाकी है ॥
खंजर तो उठा लिया हाथों मे उन्होनें,
होना ‘तसव्वुर’ का कत्ले-आम बाकी है ॥

--अंकित कुमार 'तसव्वुर'

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

तुझे देखे बिना



तुझे देखे बिना आराम नही अरमानों को ।
हमने शाम-ओ-शहर तेरी ही चाहत की है ॥
और तो कुछ भी नही मांगा हमने रब से ।
बस तुझे पाने की ही इबादत की है ॥
तू नही मिली तो क्या हुआ ए जान-ए-तमन्ना,
हमने तो तेरी तस्वीर से भी मौहब्बत की है ।
रुसवा हो गया अंकित, जुदाई से तेरी ।
आखिर ये तुमने कैसी कयामत की है ॥

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

तुम्हारी मेरी भी इक कहानी बनी थी



तुम्हारी मेरी भी इक कहानी बनी थी ।
कुछ इस तरह से मेरी जिन्दगानी बनी थी ॥
जमाने की नज़रों मे आ गई थी तेरी अदाएं ।
उम्र के जिस पडाव पर तुम सयानी बनी थी ॥
खासमखास थे मेरे लिए, वो चंद लम्हे ।
जिस घडी तुम मेरी दीवानी बनी थी ॥
खुदा जाने क्या टूट गया था तेरे मेरे बीच ।
तेरी बेवफ़ाई मेरे प्यार की निशानी बनी थी ॥
हमारा फ़साना शहर में मशहूर हुआ कुछ ऐसा ।
कि मेरी दीवानगी लोगो की जुबानी बनी थी ॥

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

रुसवा हो गए वो जमाने मे ऐसे


रुसवा हो गए वो जमाने मे ऐसे ।
कि पलके झुकी तो फ़िर उठा ना सके ॥
दूर जाकर मुझसे, इम्तिहान ले रहे थे वो ।
चाहकर भी मुझे फ़िर पा ना सके ॥
कहते थे वो कि उन्हे दर्द नही होता । 
पर अश्को को अपने छुपा ना सके ॥
हम बने पत्थर उनकी जुदाई से ।
फ़िर कभी वो हमे रुला ना सके ॥
दिल जब टूटा, तो टुकडे हुए कुछ ऐसे ।
चाहकर भी वो उन्हे मिला ना सके ॥
आग जो लगी थी मेरे दिल के आंगन में ।
आंसुओ से अपने वो बुझा ना सके ॥
दिल से निकाला हमने उस बेवफ़ा को ऐसे ।
फ़िर वो मेरे दिल मे जगह बना ना सके ॥

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

किस से दिल लगाऊं



किस से दिल लगाऊं अब तेरे शहर में ।
हर किसी मे मुझे तेरा अक्स नजर आता है ॥
बढता जाता हूं मै उन अंजान राहों पर ।
जहां कोई तेरे जैसा शख्स नजर आता है ॥
कहता है बेवफ़ा तुझको ये जमाना, पर,
तुझमे नही कोई मुझे नुक्स नजर आता है ॥
जिन्दगानी तुम मेरी बन जाओगे कभी ।
नही ऐसा कोई मुझे पक्ष नजर आता है ॥
भूला गर तुझे तो मिट जाएगा अंकित ।
ना तेरे सिवा कोई मुझे लक्ष्य नजर आता है ॥

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

शनिवार, 29 सितंबर 2012

दीवानगी उनकी


हालात बद से बदतर होते चले गए ।
हम तेरे प्यार में खोते चले गए ॥
तुम मेरी दीवानगी के हो गए थे कायल ।
क्यों मेरी नज़रों से दूर होते चले गए ॥
इंतज़ार तेरा कुछ इस तरह से किया है ।
आंखें खोलकर भी हम सोते चले गए ॥
जुदाई से तेरी, हालात बने कुछ ऐसे ।
हम खुद को अश्कों में डुबोते चले गए ॥
जब आंखें भी तेरी तरह हो गई बेवफ़ा ।
हम दिल के सहारे ही रोते चले गए ॥
खुदा से भी बढकर तुझे चाहा था हमनें ।
सारे अरमां दिल मे दफ़न होते चले गए ।।
तुमने तो वापस मुडकर भी नही देखा, और,
हम अंजान हाथों कत्ल होते चले गए ॥

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

आख़िरी पैगाम


यामत के दिन नज़दीक है शायद
कातिलों की जुबां पे मेरा नाम गया
यादों ने मेरी तकल्लुफ़ किया होगा उन्हे
एक खत आज फ़िर बेनाम गया
जाने कितने दिन की बची है ज़िन्दगी
आज फ़िर मौत का पैगाम गया
जीना तो भूल गये थे उनकी जुदाई से
आज शायद आखिरी अंजाम गया
खंज़र जो चुभाया उसने मेरे सीने मे
दर्द --दिल को मेरे भी आराम गया