खुशियों की बहारें आई है।
कुछ ठंडी फ़ुहारे आई है ॥
मेरा तन-मन उसमें भीग गया ।
मै नज़रे लडाना सीख गया ॥
कितनी सुन्दर उसकी काया ।
कैसी विचित्र उसकी माया ॥
जब-जब भी वो मुस्काती है ।
बागों में बहारें आती है ॥
दिल उसकी ओर खिंचा जाता है ।
मन छित्र-भित्र हो जाता हैं ॥
दिल की चाहत देखूं उसकों ।
मन की चाहत सोचूं उसकों ।।
कितनी मोहक मुस्कान है वो ।
कितनी सुन्दर पहचान है वो ॥
सांसों में मेरी समा गई ।
मेरे दिल का अरमान है वो ॥
-अंकित कुमार 'नक्षत्र'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें