बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

प्रेम -पत्र 4



        पलक, तुम्हारे साथ बिताए हुए चंद लम्हों को मैने अपने पहलू में समेटकर रख लिया है । कितने मादक, कितने मनमोहक, कितने प्रेमपूर्ण थे वो क्षण, जब हम दोनों एक दूसरे के इतने समीप थे कि सांसों से सांसे टकरा रही थी, नज़रे एक-दूसरे में डूबने की कोशिश कर रही थी, धडकनें इतनी तीव्र हो गई थी कि मानो एक-दूसरे से प्रतियोगिता कर रही हो और हम प्रेम के सागर मे खोते जा रहे थे । कभी तुम्हारी प्यार भरी मुस्कान याद आती है तो कभी तुम्हारा छुप-छुपकर मुझे निहारना । उन क्षणों ने मुझे एक ऐसे अदृश्य बंधन में बांध दिया है कि जितना तुमसे दूर जाता हूं, उतना ही तुम्हे अपने निकट पाता हूं  ।
ये प्रेम जो मेरे ह्रदय में तुम्हे दिखाई पडता है, ये ना तो किसी कल्पना की उडान है और ना ही कोई आकर्षण; ये प्रेम तो तुम्हारे प्रेम के प्रभाव से मेरे ह्रदय में उत्पन्न हुआ है । तुम्हारे प्यार के सम्मुख मै सब कुछ मिटा देना चाहता हूं , यहां तक कि खुद को भी या फ़िर यूं कहो कि खुद को तुम्हारी यादों में भुला देना चाहता हूं । 
        कभी तुम्हारी झूठी कसम खाई थी, आज जब वो याद आया तो ऐसा लगा जैसे मेरा सीना चीर दिया गया हो । मेरा दिल तडप उठा ये सोचकर कि मैने ये भी किया । किंतु आज तुमसे कुछ भी छिपाने का ख्याल भी नही आता । यही इच्छा होती है को तुम्हारे सम्मुख पूरी तरह से खुल जाऊं, तुम्हारे मेरे बीच कोई परदा, कोई ओट, कोई व्यवधान ना रहे । सिर्फ़ तुम हो और मै होऊं; और ये दुनिया हम दोनों में सिमट कर रह जाये । किसी रात तेरी जुल्फ़ों की छांव में सिर रखकर सो जाऊं और उस रात की कभी सुबह ना हो । 
तुम्हारे मेरे संग होने के विचार मात्र से ही मेरा मन-मयूर प्रफ़ुल्लित होने लगता है । ऐसे प्रतीत होता है कि जैसे फ़िर से वृक्ष हरे-भरे हो गए है, फ़िर से सूखी नदियों में जल प्रवाहित होने लगा है, फ़िर से बंज़र जमीन पर फ़सले लहलहा उठी है, फ़िर से वनों में पशु-पक्षी नृत्य करने लगे है और फ़िर से ये 'नक्षत्र' एक नया जीवन पा गया है ।


जाते-जाते ये नज्म तुम्हारे लिए;
"कभी तमन्ना थी तुमसे दूर जानें की 'नक्षत्र' ।
आज मिटे जाते है आगोश मे तेरे सिमटने को ॥"

-तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा 'नक्षत्र'

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