शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

तोड ना दूं यकीं तेरा


तोड ना दूं यकीं तेरा, इस डर से,
ना निकल पाया मै अपने घर से ।
तमन्ना-ए-मुलाकात-ए-आरज़ू लेकिन,
लौट गया वापस मै तेरे दर से ।
जाता हूं सहम मै दिल ही दिल में,
सोचता हू रिश्ता जोडना जब पर* से ।
जाता दूर तुमसे पल भर के लिए भी,
बिंध जाता सीना मेरा अंजान शर** से ।
नही चाहिये मुझे दौलत-औ-शौहरत,
मिल जाता सुकून फ़कत^ तेरी खबर से ।
जिंदगी जीने को वो पल ही काफ़ी थे,
जब तुमने जी भरके देखा मुझको नज़र से ।
रुसवाई-औ-बेवफ़ाई करो शौक से मगर,
ना कभी भी दूर करना अपने जिगर से ।
-  'अंकित'

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 *पर- पराया,  **शर- बाण, तीर, ^ फ़कत- केवल

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