मंगलवार, 21 सितंबर 2010

स्वीटी - मेरा प्यार [कहानी] (Part-1)

स्वीटी – मेरा प्यार
आज जब मै काफ़ी हाऊस गया तो मैने अपनी टेबल पर एक लडकी को बैठे देखा । मै उस काफ़ी हाउस मे रोज़ाना जाता था और उसी टेबल पर बैठता था । पर मैने पहले उसे वहां कभी नही देखा । पता नही वो कौन थी लेकिन थी बहुत खूबसूरत । कोई एक बार देख ले तो देखता ही रह जाये । हुआ तो मेरे साथ भी यही था । मेरा दिल मेरे काबू में नही था । आज जब मै टेबल की तरफ़ जा रहा था तो मेरे पैरो मे कंपकंपाहट सी हो रही थी । लेकिन फिर भी मै हिम्मत करके उसी टेबल पर जाकर बैठ गया ।
मैने सोचा था कि एक बार टेबल पर बैठ जाऊ, फिर बात तो मै उससे कर ही लूगां । लेकिन मेरा अंदाजा गलत था मै आधे घण्टे तक कुछ भी नही कह पाया । लेकिन मै कनखियों से उसे देख ज़रूर रहा था । और कभी-कभी तो मुझे लगता कि वो भी मुझे देख रही है लेकिन ये मेरा भ्रम भी हो सकता था । क्योकि हमे वही दिखाई देता है जो हम देखना चाहते है और वही सुनाई देता है जो हम सुनना चाहते है ।
आखिरकार उसी ने बात शुरु की । उसने पूछा “आपका नाम क्या है ?” मेरे मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे । मै बडी मुश्किल से बोल पाया “ वि.....वि…॥विजय औ....र आपका ?” शायद पहली बार मै हकलाकर बोला था । उसने अपना नाम बताया “ लोग मुझे स्वीटी बुलाते हैं।“ मैने पूछा “और मै क्या बुलाऊं ?” वो खिलखिलाकर हंसी और कहा “आप भी स्वीटी ही बुलाइये ।“ बस उसकी इसी हंसी ने मुझे दीवाना बना दिया । मेरे मन मे लड्डू फ़ूट रहे थे । लग रहा था कि आज तो किस्मत मेहेरबान हो गयी लगती है लेकिन उसके अगले सवाल ने मुझे चोंका दिया । उसने पुछा “ क्या आप लडकियो को ऐसे ही घूरते है ?” मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी । मुझसे कुछ भी जवाब देते नही बन रहा था…………………………….......

…………………………बाकी फिर


-अंकित कुमार

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