बुधवार, 26 दिसंबर 2012

अब तो चिराग संग शब मे



अब तो चिराग संग शब मे जलने लगे हम ।
पाकर गम-ए-मौहब्बत फ़िर से पिंघलने लगे हम ॥
कभी ढूंढने से भी घर नही मिलता था हमे, 
क्यों आज अपने घर से दूर निकलने लगे हम ॥
कभी डूबे रहते थे नासूर-ए-जलालत में,
क्यों पाकर जरा सा दर्द आज फ़िसलने लगे हम ॥
दर्द-ए-जुदाई की याद फ़िर से आई तो,
पर कटे पंछी की तरह मचलने लगे हम ॥
बिछडकर तुमसे हालात कुछ ऐसे हुए,
डूबते हुए सूरज की तरह ढलने लगे हम ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें