दिल से : दर्द-ए-सफ़र [ Dil Se : Dard-E-Safar ]
तमन्ना नही अब किसी और मूरत की मुझे । एक तू ही काफ़ी है मंदिर मे सज़ाने के लिए ॥ जमाने भर को हमसे नफ़रत है, तो क्या गम है । एक तू ही काफ़ी है मुझे मौहब्बत सिखाने के लिए ॥ [ Tamanna nahi ab kisi aur moorat ki mujhe. ek tu hi kafi hai mandir me sajane ke liye. jamane bhar ko humse nafrat hai, to kya gum hai. ek tu hi kafi hai mujhe mohabbat sikhane ke liye. ]
सोमवार, 16 फ़रवरी 2015
काश वो चेहरे को
शनिवार, 3 जनवरी 2015
टूटे हुए तारे को देखने
मंगलवार, 23 दिसंबर 2014
रविवार, 14 दिसंबर 2014
अंत एक दीवाने का
शुक्रवार, 21 नवंबर 2014
ना आएंगे कभी
गुरुवार, 13 नवंबर 2014
मस्तिष्क और हृदय के मध्य द्वंद
पत्तो पर ठहरी
सोमवार, 22 सितंबर 2014
जाने कितने सपने देखे,
जाने कितने सपने देखे, मैने तेरे प्यार के ।
नही काटे कटते है ये लम्हे इन्तजार के ।।
शनिवार, 20 सितंबर 2014
दिल जब टूटा, चेहरे पर
दिल जब टूटा, चेहरे पर शिकन तक नही आई ।
और आज चेहरे पे आंसुओं की लकीरे बन चली हैं ।।
शुक्रवार, 19 सितंबर 2014
हक तो हमारे पहले ही
हक तो हमारे पहले ही छिन गए थे सारे ।
अब तो बस टूटने की तमन्ना दिल में बाकी है ।।
बुधवार, 17 सितंबर 2014
गुरुवार, 11 सितंबर 2014
तेरे दिल से चले तो
तेरे दिल से चले तो बातो मे उलझ गए ।
जब बातो से चले तो यादों मे उलझ गए ।।
तेरे प्यार को जोडा था मैने कतरा-कतरा करके।
आज उन कतरनो में प्यार की खुद ही उलझ गए ।
मंगलवार, 9 सितंबर 2014
बडा नादान है ये दिल
बडा नादान है ये दिल औ कितना नासमझ भी है ।
इसे इज्जत नही दिखती, इसे नफरत
नही दिखती ।।
ये परवा ही नही करता सिवाय चाहने वालो के ।
इसे दौलत नही दिखती, इसे शौहरत
नही दिखती ।।
प्यार के ढाई अक्षर में ये कितना उलझा हुआ है ।
इसे बाते नही दिखती, इसे रातें
नही दिखती ।।
कैसा बेचैन होता है ये, इसका हाल तो देखो ।
इसे जीवन नही दिखता, इसे मृत्यु
नही दिखती ।।
अपनी ही धुन में मस्त होता जा रहा 'नक्षत्र'
इसे मंजर नही दिखता, इसे हस्ती
नही दिखती ।।
सोमवार, 8 सितंबर 2014
उन्हे हमसे भी है नफरत,
उन्हे हमसे भी है नफरत, हमारी आशिकी से भी ।
ना खुद को भूल पाता हूं, ना उन को भूल पाता हूं ।।
प्यार मे तू कितना बेबस
प्यार मे तू कितना बेबस हो गया नक्षत्र ।
ना दिल से छोड पाता है , ना दिल से छूट पाता है ।।
रविवार, 7 सितंबर 2014
हमारी हंसी से खुश नही
हमारी हंसी से खुश नही और आंसुओ से नफरत ।
तुम्ही बताओ 'नक्षत्र' ये कौन सी अदा है ।।
सोमवार, 23 जून 2014
शनिवार, 21 जून 2014
क्या हाल-ए-दिल अपना
क्या हाल-ए-दिल अपना, कैसे कहे 'नक्षत्र' ।
लफ्ज लबों से निकल ना सके,
आंखों की वो समझ ना सके ।।
गुरुवार, 19 जून 2014
मंगलवार, 29 अप्रैल 2014
ना जाओ इस तरह से
ना जाओ इस तरह से मेरे दिल को तोड के ।
ना जाओ अपने प्यार को यूं रोता छोड के ।।
जो तू अगर छूटी तो छूट जाए जिंदगी ,
ना जाओ बेरुखी से यूं नजरो को मोड के ।।
-- नक्षत्र ...
बुधवार, 12 मार्च 2014
कभी यादों से लडे
कभी यादों से लडे, कभी बातों से लडे ।
हम तेरी झूठी मुलाकातों से लडे ॥
दीदार तेरा करने की हमे चाहत थी इस कदर,
चेहरा तेरा ढकने वाले नकाबों से लडे ॥
कभी तेरी नफ़रत को भी सीने से लगा लेते थे,
आज तेरे प्यार भरे वादों से लडे ॥
कतरा-कतरा संभालकर जिन्हे संजोया था कभी,
पलकों पे रहने वाले उन ख्वाबों से लडे ॥
तुझे पाने की चाहत थी, तुझे अपना बनाना था,
यही सोचकर तेरे झूठे जवाबों से लडे ।
तेरी चाहत को ना समझा, ना समझा खुद को ही मैने,
इसी कशमकश में अपने इरादों से लडे ॥
कभी तेरे पहलू से छूटते नही थे हम ,
आज तन्हा होकर, तन्हा रातों से लडे ॥
नज़रे कभी नज़रों से थी हटती नही 'नक्षत्र'
आज चुप रहकर भी हम आंखों से लडे ॥
-अंकित कुमार 'नक्षत्र'