रविवार, 27 जनवरी 2013

समंदर की लहरों से


समंदर की लहरों से क्या दुश्मनी थी 'नक्षत्र'
सब कुछ बहा कर ले गया गरीबी छोड़कर .

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'


[
Samandar ki lehro se kya dushmani thi 'nakshatr'
sab kuchh baha ke le gayagaribi chhodkar.

-ankit kumar 'nakshatr'
 

बुधवार, 23 जनवरी 2013

मेरे अरमां दिल में रहे


मेरे अरमां दिल में रहे, पूरे ना हो सके 
वो बदनुमा दाग कभी दिल से ना धो सके 
तड़पते रहे दिल ही दिल में उन्हें देखकर
हम उनकी यादो में जी भर के ना रो सके 
प्यार में दे देते हम, जान भी, मगर, 
तेरे दिए गमों का बोझा हम ना ढो सके 
ना जाना छोड़कर मुझे, इक बात मान ले 
कहाँ से लाँऊ हौंसला कि तुझको खो सके 
जागती आँखों से सपने देखने लगे 
भूलकर फिर ख्वाब तेरा, हम ना सो सके 

- अंकित कुमार 'नक्षत्र'

शनिवार, 19 जनवरी 2013

रखा था अपने पहलू में


रखा था अपने पहलू में कितना संभालकर .
कैसे जलाऊ यादो को उसकी दिल से निकलकर 
हर कदम एहतियाती* था बर्बादी का मेरी 
शक भी नहीं हुआ हमे कातिल की चाल पर .

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'
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*एहतियाती = सोचा-समझा 

बुधवार, 16 जनवरी 2013

पलकों से गिरी बूंदों की


पलकों से गिरी बूंदों की क्या कीमत तुम्हारी नजरो में 
तुम तो इन मोतियों से अपना जी बहलाया करती हो 

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

दिल तो मजबूर है


दिल तो मजबूर है तेरी यादो में जलने के लिए 
तूने दिया नासूर मुझे, तिल-तिल मरने के लिए 
सहारा चाहे तेरा हो या हो तेरी यादो का,
मै हूं लाचार बहुत, तुझसे प्यार करने के लिए .

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

सोमवार, 14 जनवरी 2013

आंखे छलक आती है



आंखे छलक आती है पैमाने की तरह ।
हुए घायल शिकारी के निशाने की तरह ।
आशिक बने प्यार में दीवाने की तरह ।
डूब गए प्यार मे मयखाने की तरह ।
सुने गए उनके किस्से फ़साने की तरह ।
हम रह गए फ़सानों में बेगाने की तरह ।
तुमको तो मिल गया प्यार तुम्हारा, और,
नक्षत्र  रह गया अकेला, अंजाने की तरह ॥

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

रविवार, 13 जनवरी 2013

हुआ जब किस्सा-ए-दिल



हुआ जब किस्सा-ए-दिल आम तुम्हारा ।
नही तसव्वुर* में कोई काम तुम्हारा ॥
पूछा जब दोस्तों ने कातिलों का नाम ।
आया जबां पे फ़कत** बस नाम तुम्हारा ॥

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'
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*तसव्वुर= कल्पना, **फकत = केवल 

तुम मेरी जिंदगी मे



तुम मेरी जिंदगी मे आई क्यों थी ।
परछाई बनकर मेरे दिल मे समाई क्यों थी ॥
दूर जाना ही था मुझसे अगर,
तो, नजरे तुमने मुझसे लडाई क्यों थी ॥
निभाने की हिम्मत नही थी अगर ।
तो, वो झूठी कसमें खाई क्यों थी ॥
अपनी मौहब्बत से जिसे तुम ना बुझा सकी ।
आग ऐसी मेरे दिल  मे लगाई क्यों थी ॥

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

कभी खुदा को माना


कभी खुदा को माना था, फिर उसे माना 
आज तनहा होकर है टूट गया 'नक्षत्र'

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

मज़बूरियों का आलम



मज़बूरियों का आलम कुछ इस कदर है सादिक ,
चाहकर भी तेरे शहर से रिश्ता ना तोड पाऊंगा ।

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

बुधवार, 9 जनवरी 2013

यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ::मोबाइल संस्करण


यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ::मोबाइल संस्करण

यक्ष ने प्रश्न किया – मनुष्य का साथ कौन देता है?
युधिष्ठिर ने कहा – मोबाइल  ही मनुष्य का साथ देता है.

यक्ष – यशलाभ का एकमात्र उपाय क्या है?
युधिष्ठिर – सबको  मैसेज करना .

यक्ष – हवा से तेज कौन चलता है?
युधिष्ठिर – नेटवर्क .

यक्ष – विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है?
युधिष्ठिर – इंटरनेशनल रोमिंग वाला मोबाइल .

यक्ष – किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
युधिष्ठिर – गर्लफ्रेंड के मोबाइल में बैलेंस कराने पर 
मनुष्य प्रिय हो जाता है.


यक्ष – किस चीज़ के खो जाने पर दुःख नहीं होता?
युधिष्ठिर – सिम .

यक्ष – किस चीज़ को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
युधिष्ठिर – मोबाइल

यक्ष – ब्राम्हण होना किस बात पर निर्भर है? जन्म पर, विद्या पर, या शीतल स्वभाव पर?
युधिष्ठिर – मोबाइल  होने पर

यक्ष – कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
युधिष्ठिर – डुअल सिम वाला मोबाइल  होने पर

यक्ष – सर्वोत्तम लाभ क्या है?
युधिष्ठिर –फ्री में बैलेंस का होना .

यक्ष – इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – यहाँ 85 साल की बुढिया भी लाइफटाइम वाला सिम खरीदती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?

ख्वाब बनकर आए थे


ख्वाब बनकर आए थे, ज़िन्दगी में वो 'नक्षत्र' कभी 
आज तक हकीकत से, परदा किये बैठे है 

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

आशिकी हज़ार करने


आशिकी हज़ार करने आयेंगे यहाँ, मगर, 
दिया-ए-मोहब्बत दिल में जलने वाला नहीं है।

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

अश्कों में भीगना पडा मुझे



अश्कों में भीगना पडा मुझे ,
जब तुझको छोडना पडा मुझे ।
दो आंख लडी थी क्या तुमसे ,
सब नाता तोडना पडा मुझे ।
दूं दर्द तुझे तो दूं कैसे ,
दिल खुद का तोडना पडा मुझे ।
रखकर पत्थर दिल पर अपने ,
मुंह तुझसे मोडना पडा मुझे ।
छिपकर सुनसान अंधेरों में,
गम से नाता जोडना पडा मुझे ।

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

आँखों का इशारा पाने को


आँखों का इशारा पाने को, बेसब्र रहा करते थे कभी 
आज हमारी चीख भी गुमनाम हुई उनके लिए 

-अंकित 'कुमार नक्षत्र'

नव वर्ष मनाने आए है


नव वर्ष मनाने आए है .
हम प्यार सिखाने आए है .
जो बिगड़ गई थी विगत वर्ष ,
वो बात बनाने आए है .

सपने देखे थे जो हमने ,
वो सपने सजाने आए है। 
दुःख दर्द पुरातन भूलकर, 
आनंद मनाने आए है .

इन्द्रधनुषी रंगों की तरह,
इस जग पर छाने आए है .
भूल गए जो खुशियों के ,
वो गीत गाने आए है .

हम उजड़े घरो को छोड़कर ,
नयी बगिया बसाने आए है .
पीड़ा को मिटाकर हम सबकी ,
उन्हें दिल में समाने आए है .

अपने पराये का भेद मिटा ,
सबको अपना बनाने आए है .
इन बूढी सूनी आँखों में ,
कुछ ख्वाब सजाने आए है .

-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

निगाहों में जिसे सजाकर


निगाहों में जिसे सजाकर रखा था 'नक्षत्र' कभी
अश्को के बहाने निकल गए वो बूँद-बूँद करके 

-अंकित  कुमार 'नक्षत्र '