बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

स्वीटी - अंतिम विदाई


नफ़रत हो गई है तुमसे मुझे । सब कुछ झेलने को तैयार था मै तुम्हारे लिये । लेकिन आज़ ना जाने क्यूं तुमसे इतनी नफ़रत, इतनी घृणा हो गई है कि तुम्हारे नाम तक को देखना मुझे पसंद नही । एक बार मै एक पंडित से मिला था । उसने मेरे बारे मे कुछ बाते बताई थी और अंत में कहा था "तुम हर काम मे अति करते हो । ये तुम्हारे लियें बहुत हानिकारक होगी । "पंडित के इन आखिरी शब्दों से मै पूर्णरूपेण सहमत था । मै जानता हूं कि जब मै किसी को चाहता हूं तो कुछ इस तरह से कि उसके अलावा मेरे लिये कोई अहमियत नही रखता और अगर भूलता हूं तो ऐसे कि जैसे उसका कोई अस्तित्व ही नही था । और अब मै तुम्हे भी ऐसे ही भूल जाना चाहता हूं ।

"ना आना तुम कभी मेरी नज़रों के सामनें ।।
कुछ ना बचा इन आंखो में, नफ़रत के सिवा ॥"

लेकिन ये सब मै तुमसे क्यों कह रहा हूं । तुम में तो भावनाए ही नही है, दिल की बातों को समझने वाला दिल ही नही है, तुम तो हो ही पत्थर दिल । यही कहती थी ना तुम अपने बारे मे । अब तुम मुझे देखना कि मै कैसा पतथर दिल बनता हूं । ना तो मै तुम्हारा चेहरा देखना चाहता हूं और ना ही तुम्हारी आवाज़ सुनना चाहता हूं । तुम्हारी हर याद को मिटा दूंगा मै इस दिल से ।

इक वो भी दिन थे अब मै तुमसे प्यार करता था और इतना करता था कि तुम्हारे लिये कुछ भी करने को तैयार था, किसी भी हद से गुजरने को तैयार था । लेकिन अब वो समय शायद ही आए । अब तो इस दिल मे तुम्हारे लिये सिर्फ़ नफ़रत ही बची है ।

शायद मै ही पागल था जो तुम्हे पागलपन की हद तक चाहता था । परंतु अब मै सब कुछ भुला देना चाहता हूं । मै इस दिल को ऐसा पत्थर बना देना चाहता हूं कि कोई आए या जाए, मरे या जिए, इस पर कोई फ़र्क ना पडे ।

"कभी भी , किसी पर भी ज़रूरत से ज़्यादा विश्वास नही करना चाहिये ; क्योंकि अगर वही इंसान तुम्हारा विश्वास तोड दे तो संभलने की भी हिम्मत ना रहेगी तुममें ।