जाने कितने सपने देखे, मैने तेरे प्यार के ।
नही काटे कटते है ये लम्हे इन्तजार के ।।
तमन्ना नही अब किसी और मूरत की मुझे । एक तू ही काफ़ी है मंदिर मे सज़ाने के लिए ॥ जमाने भर को हमसे नफ़रत है, तो क्या गम है । एक तू ही काफ़ी है मुझे मौहब्बत सिखाने के लिए ॥ [ Tamanna nahi ab kisi aur moorat ki mujhe. ek tu hi kafi hai mandir me sajane ke liye. jamane bhar ko humse nafrat hai, to kya gum hai. ek tu hi kafi hai mujhe mohabbat sikhane ke liye. ]
जाने कितने सपने देखे, मैने तेरे प्यार के ।
नही काटे कटते है ये लम्हे इन्तजार के ।।
दिल जब टूटा, चेहरे पर शिकन तक नही आई ।
और आज चेहरे पे आंसुओं की लकीरे बन चली हैं ।।
हक तो हमारे पहले ही छिन गए थे सारे ।
अब तो बस टूटने की तमन्ना दिल में बाकी है ।।
तेरे दिल से चले तो बातो मे उलझ गए ।
जब बातो से चले तो यादों मे उलझ गए ।।
तेरे प्यार को जोडा था मैने कतरा-कतरा करके।
आज उन कतरनो में प्यार की खुद ही उलझ गए ।
बडा नादान है ये दिल औ कितना नासमझ भी है ।
इसे इज्जत नही दिखती, इसे नफरत
नही दिखती ।।
ये परवा ही नही करता सिवाय चाहने वालो के ।
इसे दौलत नही दिखती, इसे शौहरत
नही दिखती ।।
प्यार के ढाई अक्षर में ये कितना उलझा हुआ है ।
इसे बाते नही दिखती, इसे रातें
नही दिखती ।।
कैसा बेचैन होता है ये, इसका हाल तो देखो ।
इसे जीवन नही दिखता, इसे मृत्यु
नही दिखती ।।
अपनी ही धुन में मस्त होता जा रहा 'नक्षत्र'
इसे मंजर नही दिखता, इसे हस्ती
नही दिखती ।।
उन्हे हमसे भी है नफरत, हमारी आशिकी से भी ।
ना खुद को भूल पाता हूं, ना उन को भूल पाता हूं ।।
प्यार मे तू कितना बेबस हो गया नक्षत्र ।
ना दिल से छोड पाता है , ना दिल से छूट पाता है ।।
हमारी हंसी से खुश नही और आंसुओ से नफरत ।
तुम्ही बताओ 'नक्षत्र' ये कौन सी अदा है ।।