मंगलवार, 23 दिसंबर 2014



तेरी चाहत दिल से मै निकाल ना सका। 
तेरे जाते-जाते खुद को संभाल ना सका।।

तुझको देखूं आँखे भीगी जाए कैसे क्यों ,
 

रविवार, 14 दिसंबर 2014

अंत एक दीवाने का



अंत एक दीवाने का, हुआ कुछ इस तरह
पेड से सूखे पत्ते, टूट जाए जिस तरह
तमन्ना एक इस दिल की, थोडा प्यार पाने की ।
अपना वजूद मिटाकर भी, तेरा ऐतबार पाने की ॥

मौहब्बत में उसकी, था सब कुछ लुटा दिया ।
मैने तो उसको ही, अपनी दौलत बना लिया ॥
जिस पल इन हाथो से उसका हाथ छूट गया ।
ऐसा लगा जैसे कोई खूबसूरत, तोहफ़ा टूट गया ॥

कहा था सनम ने, ना चेहरा दिखाना कभी ।
ना ही खुद आना, ना मुझे बुलाना कभी ॥
कुछ दिन पहले वो, मिला करती थी बडी शिद्दत से ।
आज ऐसे मिली जैसे, मिली ना हो मुद्दत से ॥

कहा था उस बेवफ़ा ने, मुझे भुला देना ।
भूलकर मुझे, कही और दिल लगा लेना ॥
यादों में उसकी रोकर, कितनी रातें गुजार दी ।
दूर उससे होकर, उसकी जिंदगी सवार दी ॥

मेरे प्यार से उसका दिल, पिंघल ना सका ।
अचानक उसके वार से मै, संभल ना सका ॥
उसका घर रोशन करने को, था खुद को जला दिया ।
इन आंखों से अश्कों का, समंदर बहा दिया ॥

उसे शायद अश्कों से मेरे, मुहब्बत हो गई ।
तभी तो सब कुछ भूलकर वो, बेवफ़ा हो गई ॥
मै चाहकर भी उसे दिल से, निकाल ना सका ।
भूलकर उसे खुद को, संभाल ना सका ॥

कद्र नही थी आंसुओं की मेरे, आंखों में उसकी ।
झलकती थी नफ़रत ही फ़कत, बातों में उसकी ॥
हराकर मेरे प्यार को, जीत उसकी हो गई ।
उसकी नफरत के बीच, मेरी हस्ती खो गई ॥

नही महफ़िलें सजती अब, यारों संग पीने की ।
इच्छा नही होती अब, उसे भूलकर जीने की ॥
सनम को खोकर जीने का, हौंसला नही रहा ।
मेरे संग उसका आज, फ़ैंसला नही रहा ॥

खो दिया है यार को, अब जिंदा क्यों रहूँ ।
इतने गमों का बोझा, इस दिल पर क्यों सहूँ ।।
कभी लडखडा जाते थे, सीढ़ियां चढते हुए ।
काँपे नही कदम आज, मौत की तरफ़ बढते हुए ॥

उठाकर जहर की शीशी, होंठों से लगा ली ।
और देखते ही देखते, गलें मे समा ली ॥
छोडकर सनम को जब, ना रहा नक्षत्रखास सा ।
बेसुध होकर गिर पडा था, सर कटी लाश सा ॥


-अंकित कुमारनक्षत्र

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

ना आएंगे कभी


ना  आएंगे कभी, उनकी नज़रो में अब हम। 
कैसे झेल पाएंगे, ये नासूर-ए-गम ।।
तमन्ना-ए-दिल, तेरी आँखों में बस जाए।  
ना हो कभी जुदा , तेरे दिल से ए-सनम ।।

-अंकित कुमार 'नक्षत्र '

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

मस्तिष्क और हृदय के मध्य द्वंद



सैंकड़ो तुफानो के मध्य घिरी जिंदगी 
दो  दिशाए मिली 
एक मस्तिष्क से और 
दूजी  ह्रदय से। 

प्रथम कहता 
छोड़ दे मोह 
सब व्यर्थ  है 
कुछ भी प्राप्त नही होगा 
दूजा कहता 
क्या कुछ पाना ही जिंदगी है 
अनमोल प्रेम का कोई मोल नही। 

किन्तु 
परन्तु 
मस्तिष्क पर भारी पड़ रहा मन 
हावी हुए हृदय के विचार 
और जिंदगी दौड़ चली 
प्रेम के पीछे 
जहा 
कुछ मिले या न मिले 
 प्रेम की लौ तो जलेगी 
छोड़  दिया सब कुछ  इसके लिए। 


मन दौड़ चला 
दिल  मचल उठा 
उसके लिए
व  उसे बताने को 
सब संभव प्रयास करूँगा अब 
चाहे कितनी कठिनाई हो 
उसे अपना बनाना है 
उसे दिल से अपनाना है। 

उसकी आँखों के सूनेपन में 
फिर से एक बार 
प्रेम की लौ देखनी है 
टुटा था जो विश्वास 
उसे जीवित कराना है 
उसे दिल से मानना है। 

-अंकित 

पत्तो पर ठहरी




पत्तो पर ठहरी
बरखा की बौछारों से
विचार आता
अभी गिर जाएंगी ये बूंदे
वृक्ष की हरियाली को अधिक नवीन बनाकर
कुछ इसी प्रकार
आँखों से गिरे आंसुओ से
संभव है
मन उनका हल्का हो जाये
हृदय की पीड़ा
लोचनो के मार्ग से
बह चले जीवन से दूर कही

-अंकित कुमार 


सोमवार, 22 सितंबर 2014

शनिवार, 20 सितंबर 2014

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

तेरे दिल से चले तो


तेरे दिल से चले तो बातो मे उलझ गए ।
जब बातो से चले तो यादों मे उलझ गए ।।

तेरे प्यार को जोडा था मैने कतरा-कतरा करके।
आज उन कतरनो में प्यार की खुद ही उलझ गए ।

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

बडा नादान है ये दिल

बडा नादान है ये दिल औ कितना नासमझ भी है ।
इसे इज्जत नही दिखती, इसे नफरत
नही दिखती ।।

ये परवा ही नही करता सिवाय चाहने वालो के ।
इसे दौलत नही दिखती,  इसे शौहरत
नही दिखती ।।

प्यार के ढाई अक्षर में ये कितना उलझा हुआ है ।
इसे बाते नही दिखती,  इसे रातें
नही दिखती ।।

कैसा बेचैन होता है ये, इसका हाल तो देखो ।
इसे जीवन नही दिखता,  इसे मृत्यु
नही दिखती ।।

अपनी ही धुन में मस्त होता जा रहा 'नक्षत्र'
इसे मंजर नही दिखता,  इसे हस्ती
नही दिखती ।।

सोमवार, 8 सितंबर 2014

उन्हे हमसे भी है नफरत,

उन्हे हमसे भी है नफरत, हमारी आशिकी  से भी ।

ना खुद को भूल पाता हूं, ना उन को भूल पाता हूं ।।

वो बेवफा कहती थी

वो बेवफा कहती थी उसे प्यार बहुत है ।

औ हमारे दो आंसू भी वो संभाल ना सकी ।।

प्यार मे तू कितना बेबस

प्यार मे तू कितना बेबस  हो गया नक्षत्र ।

ना दिल  से छोड पाता है , ना दिल  से छूट पाता है  ।।

जिंदगी कुछ ऐसे

जिंदगी कुछ ऐसे निकल गई आंखों  से ।

रेत जैसे फिसल जाए मुट्ठी बंद हाथों से ।।

कहूंगा कुछ शब्द अपने

कहूंगा कुछ शब्द अपने आंसुओं की जबानी ।

बिखर जाएगी  शहर मे दर्द-ए-दिल की कहानी ।

रविवार, 7 सितंबर 2014

शनिवार, 21 जून 2014

गुरुवार, 19 जून 2014

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

तुमसे दूरी बढी तो


तुमसे दूरी बढी तो चाहा दम निकल जाए ।
मेरे दिल का आज सारा गम निकल जाए ।।

ना जाओ इस तरह से


ना जाओ इस तरह  से मेरे दिल को तोड के ।
ना जाओ अपने प्यार को यूं रोता छोड के ।।
जो तू अगर छूटी   तो   छूट  जाए   जिंदगी ,
ना जाओ बेरुखी से यूं नजरो को   मोड के ।।

-- नक्षत्र ...

बुधवार, 12 मार्च 2014

कभी यादों से लडे



कभी यादों से लडे, कभी बातों से लडे ।
हम तेरी झूठी मुलाकातों से लडे ॥
दीदार तेरा करने की हमे चाहत थी इस कदर,
चेहरा तेरा ढकने वाले नकाबों से लडे ॥

कभी तेरी नफ़रत को भी सीने से लगा लेते थे,
आज तेरे प्यार भरे वादों से लडे ॥
कतरा-कतरा संभालकर जिन्हे संजोया था कभी,
पलकों पे रहने वाले उन ख्वाबों से लडे ॥

तुझे पाने की चाहत थी, तुझे अपना बनाना था,
यही सोचकर तेरे झूठे जवाबों से लडे ।
तेरी चाहत को ना समझा, ना समझा खुद को ही मैने,
इसी कशमकश में अपने इरादों से लडे ॥

कभी तेरे पहलू से छूटते नही थे हम ,
आज तन्हा होकर, तन्हा रातों से लडे ॥
नज़रे कभी नज़रों से थी हटती नही 'नक्षत्र'
आज चुप रहकर भी हम आंखों से लडे ॥
-अंकित कुमार 'नक्षत्र'