गुरुवार, 30 सितंबर 2010

वो सुहाने दिन [कहानी] (Part-1)

वो सुहाने दिन

अर्धवार्षिक परीक्षाओं के बाद हमारे कालेज़ नये-नये खुले थे। मै रोज़ाना की तरह बस से जा रहा था कि मेरी नज़रे एक लडकी से टकराई। उसके बाद कई बार मैने उसकी तरफ़ और उसने मेरी तरफ़ देखा। वो लडकी भी बस से ही कालेज़ जाती थी। लेकिन पहले कभी मैने उसे इस तरह नही देखा था। अब ये नज़रे मिलने-मिलाने का सिलसिला रोजाना चलने लगा। कभी-कभी अगर वो नही आती थी तो मै बहुत उदास हो जाता था। एक दिन मै कालेज़ ना ज़ाकर उसके पीछे चला गया। उसने मुझे अपने पीछे आते हुए देख लिया था। लेकिन ना तो मै उससे कुछ कह पाया और ना ही वो मुझसे कुछ कह पाई। अगले दिन मैने सोचा कि आज़ कुछ भी हो जाये मै उससे बात करके ही रहूंगा। आज़ मै उसके साथ-साथ चल रहा था लेकिन मै उससे कुछ कह नही पाया। अचानक उसने मुझसे पूछा - "आपका कालेज़ किस टाइम से हैं?" मैने कहा - "है तो नौ बजे से ही।" वो बोली - "आपको देर नही हो रही है।" मैने कहा - "हां, हो तो रही है।" उसने कहा - "तो फ़िर इतना धीरे-धीरे क्यों चल रहे हैं?" मैने कहा - " बस यूं ही।"
मैने उससे पूछा - " तुम्हारा नाम क्या है?" उसने कहा - "क्यों? क्या करोगे नाम पूछ्कर?" मैने कहा - "बस ऐसे ही।" उसने कहा - "पुष्पा।" मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया - " आई हेट टियर्स पुष्पा।" वो हंसने लगी और मै भी। उसने पूछा - "अपना नाम भी बता दो।" अब मेरी बारी थी। ज़वाब देने के बज़ाय मैने सवाल दाग दिया - " तुम क्या करोगी मेरा नाम पूछ्कर?" वो थोडा गुस्से से बोली - "तुम मेरा नाम पूछ सकते हो मगर मै तुम्हारा नाम नही पूछ सकती।" "नही, पूछ सकती हो" - मैने कहा " विज़य, विज़य चौधरी नाम है मेरा।" वो बोली - " अच्छा नाम हैं।" मैने कहा - "तुम्हारा भी " तो कहने लगी - "पहले तो नही कहा था।" मैने कहा - "अब तो कह दिया।" मैने घडी में टाइम देखा। साढे नौ बज़ रहे थे। मुझे लगा कि अब अगर मैने ज़्यादा देर की तो कालेज़ नही पहुंच पाऊंगा। मैने उससे कहा - " मुझे देर हो रही है; अब मै चलता हूं।" उसने कहा - "ठीक है, ज़ाओ।" मैने पूछा - " कल भी आओगी" कहने लगी - " क्यो?" मैने कहा - "बस यूं ही।" वो बोली - "तुम यूं ही बहुत पूछ्ते हो" मैने कहा - "हां, बस यूं ही" उसके बाद मै कालेज़ ज़ाने लगा। मैने पीछे मुडकर उसे देखा तो वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा दी। मै भी मुस्कुरा दिया। फ़िर मै कालेज़ चला गया। अगले दिन …………………………………

- अंकित

बुधवार, 29 सितंबर 2010

कहां गई वो




कुछ ढूंढ्ता रहता हूं दिल ही दिल मे

लेकिन कुछ नही मिलता उसकी यादों के सिवा ।

सोचता हूं जला दूं उसकी यादो को

लेकिन डरता हूं कहीं ज़ल ना जाऊं खुद ही ।

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कुछ यादें




यूं इल्जाम ना लगाओ मेरे दामन पर

कि हम गैरो की ज़ुल्फ़ों मे सोते है ।

सारी रात भीगा हूं अश्को की बारिश में

हम वो नही जो महफ़िल मे आके रोते है ॥


मंगलवार, 28 सितंबर 2010

पहली बार [कहानी]


पहली बार

वार्षिक परीक्षाएं समाप्त होने के बाद मै घर गया हुआ था। घर जाने पर मुझे पता चला कि दस दिन बाद मेरी मौसी के लडके की शादी हैं। मम्मी ने मुझे जाने के लिये बोला तो मै तुरन्त ही जाने के लिये तैयार हो गया। पहले मुझे मामाजी के पास जाना था। उसके बाद मौसी के घर जाना था। इसलिये मै घर से दो दिन पहले ही मामाजी के पास चला गया। फ़िर मै मामाजी के साथ सगाई वाले दिन मौसी के घर गया। जब हम वहां पहुचे तो ज्यादातर मेहमान आ चुके थे। तभी मेरी मौसी की लडकी मेरे पास आई और बोली कि भैया मेरे साथ चलो आपको किसी से मिलवाना है। मैने उससे पुछा कि कौन है लेकिन उसने नही बताया। मैने कहा कि चलो ठीक है मै तुम्हारे साथ चलता हूं। उसने मुझे अपनी सहेली से मिलवाया जो कि मुझसे मिलना चाहती थी। लेकिन जब मैने उससे पूछा कि क्या आप मुझसे मिलना चाहती थी तो उसने मना कर दिया। फ़िर मै जाने लगा तो उसने मेरी बहन से मुझे रोकने के लिये कहा । जैसे ही मै पीछे मुडा तो उसने कहा- " हां, मै ही आपसे मिलना चाहती थी। आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो। " मुझे ये सुनकर बहुत अजीब सा लगा। ऐसा नही था कि वो लडकी मुझे अच्छी नही लगी थी। लेकिन मै उससे पहली बार मिला था। मैने उससे पूछा कि आप मेरे बारे मे कुछ जानती भी हो या फ़िर अभी देखा और अच्छा लगने लगा। उसने मुझे बताया कि जब मै पिछ्ली बार मौसी के घर आया था तब उसने मुझे देखा था। लेकिन तब वो मुझसे बात नही कर पाई थी। फ़िर उसने मेरी बहन की तरफ़ इशारा करके बताया - "मैने इनसे आपके बारे मे पूछा था।" तब मुझे समझ मे आया कि ये सब मेरी बहन की करामात है। मैने उससे कहा कि मै तो तुम्हे अच्छा लगता हू लेकिन ये ज़रूरी तो नही कि मै भी तुम्हे पसन्द करु। वो कहने लगी - "आप मुझे अच्छे लगते हो बाकी मुझे कुछ नही पता।" मैने कहा कि तुम पागल हो; तो कहने लगी जो चाहे समझो। फ़िर उसने मुझे अपना नाम बताया। अनामिका नाम था उसका। मैने कहा कि मेरा नाम तो तुम्हे पता ही होगा। वो बोली कि पता तो है फ़िर भी एक बार आप बताएंगे तो मुझे अच्छा लगेगा। " विजय कहते है दुनिया वाले मुझे। " - मैने कहा। कहने लगी मुझे आपका अंदाज अच्छा लगा। मैने कहा कि मुझे भी तो अपने बारे मे कुछ बताओ। उसने कहा कि पहले ये बताओ कि मै तुम्हे अच्छी लगती हूं या नही। अच्छी तो वो मुझे लग रही थी। मैने कहा कि तुम्हरी आवाज बहुत अच्छी है। वो बोली - "और मै ।" मैने कहा कि हां तुम भी । उसके चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई। मै भी मुस्कुरा दिया। तभी मेरी बहन आ गयी और बोली - " क्या बातें हो रही है दोनो में।" मैने कहा - " कुछ नही ।" तो बोलने लगी - "कोई बात नही भैया। मत बताइये, मै अपनी सहेली से पूछ लूंगी।" मैने कहा - " ठीक है पूछ लेना।" फ़िर मुझसे बोली कि भैया मै अनामिका को अपने साथ ले जाऊं। मैने कहा कि कही भी ले जाओ मुझसे क्या पूछ्ती हो। तो बोली -"भैया, अब तो इसे ले जाने के लिये आपसे ही पूछ्ना पडेगा। "मैने कहा कि ठीक है अब मेरा दिमाग खराब मत कर्। कहने लगी "हां भैया अब तो हम आपका दिमाग खराब कर रहे है।" मैने कहा ठीक है अब तुम जाओ। मैने अनामिका से पुछा कि कितनी देर मे आओगी। तो कहने लगी कि मै तो जाना ही नही चाहती लेकिन क्या करुं मजबूरी है जाना तो पडेगा। मैने कहा - "ठीक है ज़ल्दी आना।"
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…………………………………………………………………………………………………………………बाकी फ़िर

सोमवार, 27 सितंबर 2010

उनकी याद में



जिये जा रहे है ........ पता नही क्यो ......... जीने के लिये ........या फिर ....………………किसी के सपनों के लिये ॥

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

अंदाज़ शायराना

शायराना अंदाज़


आंखो मे है गम के आंसू और होठो पे फ़रियाद है
अब क्या है पास हमारे बस एक तेरी याद है………………॥



बदनाम हुए सारी दुनिया मे और
खता सिर्फ़ इतनी ................



कि उनसे नज़रे मिल गई

स्वीटी - मेरा प्यार [कहानी] (Part-1)

स्वीटी – मेरा प्यार
आज जब मै काफ़ी हाऊस गया तो मैने अपनी टेबल पर एक लडकी को बैठे देखा । मै उस काफ़ी हाउस मे रोज़ाना जाता था और उसी टेबल पर बैठता था । पर मैने पहले उसे वहां कभी नही देखा । पता नही वो कौन थी लेकिन थी बहुत खूबसूरत । कोई एक बार देख ले तो देखता ही रह जाये । हुआ तो मेरे साथ भी यही था । मेरा दिल मेरे काबू में नही था । आज जब मै टेबल की तरफ़ जा रहा था तो मेरे पैरो मे कंपकंपाहट सी हो रही थी । लेकिन फिर भी मै हिम्मत करके उसी टेबल पर जाकर बैठ गया ।
मैने सोचा था कि एक बार टेबल पर बैठ जाऊ, फिर बात तो मै उससे कर ही लूगां । लेकिन मेरा अंदाजा गलत था मै आधे घण्टे तक कुछ भी नही कह पाया । लेकिन मै कनखियों से उसे देख ज़रूर रहा था । और कभी-कभी तो मुझे लगता कि वो भी मुझे देख रही है लेकिन ये मेरा भ्रम भी हो सकता था । क्योकि हमे वही दिखाई देता है जो हम देखना चाहते है और वही सुनाई देता है जो हम सुनना चाहते है ।
आखिरकार उसी ने बात शुरु की । उसने पूछा “आपका नाम क्या है ?” मेरे मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे । मै बडी मुश्किल से बोल पाया “ वि.....वि…॥विजय औ....र आपका ?” शायद पहली बार मै हकलाकर बोला था । उसने अपना नाम बताया “ लोग मुझे स्वीटी बुलाते हैं।“ मैने पूछा “और मै क्या बुलाऊं ?” वो खिलखिलाकर हंसी और कहा “आप भी स्वीटी ही बुलाइये ।“ बस उसकी इसी हंसी ने मुझे दीवाना बना दिया । मेरे मन मे लड्डू फ़ूट रहे थे । लग रहा था कि आज तो किस्मत मेहेरबान हो गयी लगती है लेकिन उसके अगले सवाल ने मुझे चोंका दिया । उसने पुछा “ क्या आप लडकियो को ऐसे ही घूरते है ?” मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी । मुझसे कुछ भी जवाब देते नही बन रहा था…………………………….......

…………………………बाकी फिर


-अंकित कुमार