'पलक', तुम्हारा प्रेम देखकर मै तडप उठता हूं । कितना यकीन, कितना अधिक विश्वास है तुम्हे मुझ पर । मै तो मात्र यही सोचकर सहम जाता हूं कि अगर कभी तुम्हे मुझसे दूर रहना पडा, तो कैसे रह पाओगी तुम ? तुम्हारी मनोदशा क्या होगी ? शायद उसके बाद तुम किसी पर विश्वास ना कर पाओ ।मै तुमसे हमेशा यही कहता हूं "मुझसे इतना प्रेम ना करो पलक, मै उसके योग्य नही हूं ।" किंतु, आज तुम्हारे प्रेम के आधिक्य के कारण ही मै खुद को बेबस महसूस कर रहा हूं । मुझे स्वयं से अधिक तुम पर विश्वास हो चला है । मैने तुम्हारा दिल दुखाया, मात्र यह सोचकर कि तुम मुझसे घृणा करो । लेकिन मै शायद वही भूल गया था, जो स्वयं कहता हूं कि '' अगर कुछ घटनाओं के कारण आप अपने प्रेमी से घृणा करने लगो तो इसका अर्थ यही है कि वहां प्रेम था ही नही, घृणा दबी हुई थी कहीं गहरे में, जो थोडा सा मनमुटाव होने पर प्रकट हो गई है । '' परंतु तुम्हारे प्रेम ने मुझे सत्य कहने को विवश कर दिया, मै स्वयं को और अधिक नही रोक पाया और तुम्हारे सम्मुख सब कुछ कह दिया '' हां, पलक हां, मै भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं जितना कि तुम मुझसे, बल्कि उससे भी कही ज्यादा । तुमसे मिलन की वही तीव्र उत्कंठा मेरे मन में भी रहती है, जो तुम्हारे मन में है। अब मै कुछ भी नही छिपाना चाहता , सब कुछ शीशे की तरह साफ़ कर देना चाहता हूं । किसी का डर नही है मुझे । मै तुम्हारा प्रेम स्वीकार करता हूं, पलक, स्वीकार करता हूं |
-तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा 'विजय'
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