मंगलवार, 13 सितंबर 2011

स्वीटी : Once Again


स्वीटी,

तुम कहती थी कि विज़य तुम तो पागल हो और मै हमेशा यही कहता था मुझे पागल ना कहो स्वीटी । प्यार में लोग दिवाने होते हैं, पागल नही होते । लेकिन पागल तो मै तुम्हें समझाते-समझाते हो चुका था ।

"हमने कितनी कोशिश की, तुम्हे अपना बनाने की ।
कहां से सीखी तुमने ये अदा, ज़िद पे उतर ज़ाने की । "

ना ज़ाने क्या कशिश थी तुम्हारी आंखो में कि एक बार देखने के बाद खुद पर काबू नही रह गया था मेरा । बस यहीं सोचा था कि

" हमने पाला मुद्दतो ज़िसे अपने पहलू में ।
इक नज़र तुमने ज़ो देखा, दिल तुम्हारा हो गया । "

" विज़य, आखिर ऐसा भी क्या है मुझमें, जो तुम मेरे पीछे पागल हुए ज़ातें हो । कुछ अपना भी तो ख्याल करो । " मै क्या कहता तुमसे । अपना ख्याल तो ना जाने कब से भूल चुका था मै । अब तो बस एक ही ख्याल था तुम्हारा और अपना ख्याल क्या रखते हम क्योंकि

"अब मौत भी हमको मारेगी क्या
मार हम नज़रो की खाए हुए हैं "

स्वीटी, तुम कहती थी कि तुम्हे मुझसे प्यार है । हां स्वीटी, सच कहा था तुमने, तुम्हे मुझसे प्यार तो है लेकिन प्रेम नही है । प्यार और प्रेम मे बहुत गहरा अंतर हैं । प्यार तो इंसान जानवरो से भी करता है लेकिन प्रेम । तुम नही समझोगी, तुम समझ ही नही सकती । प्रेम को तो उसकी गहराई मे उतर कर ही ज़ाना जा सकता है । लेकिन आज़ भी तुम्हारी याद इस दिल को तडपा जाती है । बहुत याद आती है तुम्हारी ;

"खुद ही को भूल सा गया हूं मै,
क्यों इतना याद आती हो तुम्।
कभी तो सामने आ ज़ाओ मेरी ज़ान,
क्यों इतना सताती हो तुम "

तुम्हें देखकर तो उस खुदा में भी यकीन करने लगें थे हम जिसे कभी माना ही नही था ।

" हम तो खुदा के कभी कायल ना थें
तुझे देखा तो खुदा याद आया "

दिल करता था आठो पहर तुम मेरे सामनें बैठी रहो । पर ऐसी अपनी किस्मत कहां ।

"ना जी भरकर देखा और ना ही बात की
बहुत आरज़ू थी हमें, तुमसे मुलाकात की । "

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

स्वीटी : A memory

प्रिय स्वीटी,
मै तुम्हे तब से प्यार करता हूं ज़ब मैने तुम्हे पहली बार देखा था और देखकर यही सोचा था कि

"मेरे सुकूने-दिल को तो होना ही था तबाह
उनकी भी एक निगाह का नुकसान हो गया "

तुम्हे देखकर ऐसा लगा था कि यही है वो ज़िसकी मुझे तलाश थी । शायद आज़ मेरी तलाश पूरी हो गई । लेकिन वो शायद , शायद ही रह गया ।
तुम्हे याद है एक बार तुमने कहा था कि तुम मुझसे इतना प्यार क्यो करते हो विज़य ? ज़बाब नही मिल रहा था मुझे । और कुछ सवाल ऐसे होते है ज़िनका ज़बाब हमे खुद भी पता नही होता । तुम्हारा सवाल भी कुछ ऐसा ही था । मैने पहली बार सोचा कि आखिर मै तुमसे इतना प्यार करता क्यो हूं ? ज़बाब है कि बस प्यार करता हूं । क्यों करता हूं ये तो मै भी नही ज़ानता लेकिन ये ज़रूर ज़ानता हूं कि बेइंतहा प्यार करता हूं ।
और तुम मेरे करीब, इतने करीब आती गई कि मै सोचने पर मज़बूर हो गया कि

"लाऊंगा कहा से जुदाई का हौंसला
क्यों इस कदर क़रीब मेरे आ रही हो तुम "

बेइंतहा प्यार करता था मै तुमसे, ये ज़ानते हुए भी कि तुम मेरी ज़िंदगी में कभी नही आओगी । लेकिन दिल नही मानता था । बस ऐसा लगता था कि मेरे प्यार को देखकर तुम सब मज़बूरियां भूल ज़ाओगी और मेरे पास आकर कहोगी ,"मै भी तुमसे प्यार करती हूं विजय " लेकिन ऐसा कभी हुआ नही ।
ये तो मै अभी भी मानता हूं कि तुमने मुझे धोखा नही दिया । क्योकि धोखा तो अपने देते है और

" जिसका कोई हो ही ना वो धोखा किससे खायेगा "

हंसने-मुस्कुराने की तो आदत रही है हमारी। लोग तो हमारी हंसी से भी धोखा खा ज़ाते है लेकिन

" खुशी ही हो हर गम के पीछे ये ज़रूरी तो नही
कभी-कभी गम भी बन ज़ाता है मुस्कुराने की वज़ह "

-तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा विजय