बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

जब मौसम कही, कोई सुहाने होते है



जब मौसम कही, कोई सुहाने होते है ।
दिल मे तेरे प्यार के तराने होते है ।।
अगर कभी दीदार होता है तुम्हारा ।
हम तेरे खंजर के निशाने होते है ॥
चाहे हम को कर दो तुम दूर खुद सें ।
हम फ़िर भी तेरे प्यार के दीवाने होते है ॥
पहचान तो इक अरसे से तुमसे मेरी, लेकिन
हम आज भी गलियों मे तेरी अंजाने होते है ॥

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

अश्क हो रहे है बेकाबू आजकल


अश्क हो रहे है बेकाबू आजकल 
जाने किस तरह पलकों में छिपा रखा है 
इक बेदर्द की यादो को आज भी 
हमने  दिल के आईने में सज़ा रखा है 

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मेरी कब्र के फ़ूल



मेरी कब्र के फ़ूल उनके हाथों से सज़ाए ना गए
दर्द ऐसा दिया उन्होने, कि वो हमसे भुलाए ना गए
सारा शहर उमड पडा था देखने को मुझे ,
फ़कत1 वो ही मेरी मय्यत2 पे बुलाए ना गए
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1. फ़कत = केवल  2. मय्यत = जनाज़ा 

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

इन आंखो से



इन आंखो से उसे पाने का ख्वाब मिटा दे।
वो उगता हुआ सूरज है, तुम डूबता जहाज़ ॥

उनकी नाराजगी के डर से



उनकी नाराजगी के डर से हम इकरार ना कर पाए ।
छुप-छुप के भी उनको कभी हम प्यार ना कर पाए ॥
जूस्तजू-ए-जान-ए-मन, माफ़िक तूफ़ानों के ।
फ़िर भी उनसे इश्क का इज़हार ना कर पाए ॥
बेकरारी से हमारा दम निकलता है मगर ,
आज तक भी उनकों बेकरार ना कर पाए ॥
जब भी हाथ उनका उठा वार करने को,
सीना अपना दिखा दिया, इन्कार ना कर पाए ॥
हर गली-कूचे मे हम बदनाम है लेकिन,
उनकों रुसवा हम सरे-बाज़ार ना कर पाए ॥

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

क्यों फ़िर से तू मुझे, इस तरह तडपाने लगा



क्यों फ़िर से तू मुझे, इस तरह तडपाने लगा ।
क्यो अपनी प्यास मेरे, अश्कों से बुझाने लगा ॥
आंखे बरसती रहती है, दिन-रात याद में ।
कि आंसुओ मे भी अब तेरा, चेहरा नज़र आने लगा ॥
आना तो चाहा था, तेरी ही गलियों में ।
ना जाने मुडकर क्यों, किस ओर मै जाने लगा ॥
जाम को छूते ही, कांप जाते है मेरे होठ ।
ये कैसा नशा आज ,'अंकित' पे फ़िर छाने लगा ॥

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

छोड दे सादिक, आज जाने दे मुझे ।



छोड दे सादिक, आज जाने दे मुझे ।
मेरे यार की खबर अब लाने दे मुझे ।।
वो भूली है सब कुछ मेरी जुदाई से ।
आज उसकी याद मे मिट जाने दे मुझे ।।
बेवफ़ा नही है वो, ये आज समझा हूं ।
तसव्वुर मे अपनी उसे लाने दे मुझे ॥
तमन्ना है 'अंकित' की फ़कत, उसको पाने की ।
फ़िर से उसकी बाहों मे खो जाने दे मुझे ॥

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

एक तू ही काफ़ी है



तमन्ना नही अब किसी और मूरत की मुझे ।
एक तू ही काफ़ी है मंदिर मे सज़ाने के लिए ॥
जमाने भर को हमसे नफ़रत है, तो क्या गम है ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे मौहब्बत सिखाने के लिए ॥
घर फ़ूंक के मेरा, जमाना खुश है तो क्या हुआ ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे दिल मे बसाने के लिए ॥
इस शहर नें दोज़ख बना दी जिन्दगी मेरी ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे जन्नत दिखाने के लिए ॥
सारी छते टूट गई है, आज़ मेरे लिए ।
तेरा आंचल ही काफ़ी है, मुझे सर छुपाने के लिए ॥

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

जब तुम मुझसे मिलती हो ।


जब तुम मुझसे मिलती हो ।
मेरि अंखियों में खिलती हो ॥
नज़रे नज़रों से मिलती है ।
फ़ूलों में कलियां खिलती है ॥
आंखों को सुकून आ जाता है ।
मुझपे सुरूर छा जाता है ॥
मै तुझ में ही खो जाता हूं ।
तेरी ओर मुडा चला आता हूं ॥
ये लब कुछ कहना चाहते है ।
तुझे देख मौन हो जाते है ॥
जाने कब राते होती है ।
आंखों से बाते होती है ॥
तुम जाने को जब कहती हो ।
मुझपे उदासी छा जाती है ॥
मिलने का वादा करती हो ।
मुस्कान मुझे छू जाती है ।।

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

राधा-कृष्ण



माधुर्य वाणी, चंचल चितवन,
राधा कृष्णा से मिली मधुबन ।
थे नेत्र सजल-औ-अश्रुपूर्ण,
श्रीकृष्ण देख हुए भाव-विहल ।
राधा के मुख पर देखी थी,
कृष्ण नें वियोग की पीडा आज ।
उनको भी स्मृति होने लगी,
राधा के संग प्रेम-क्रीडा आज ।
अंतर्मन बांसुरी में खोकर,
गोपियों के संग वो करते रास ।
लेकिन कृष्णा भंवरों की तरह,
मंडराते राधा के आस पास ।
राधा को वियोग सहना पडा,
फ़िर समय आया ऐसा विकट ।
राधा की प्रार्थना, कृष्णा से,
हो जाओ मेरे सम्मुख प्रकट ।

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

फ़ूलों में अभी कुछ सुहास बाकी है ।



फ़ूलों में अभी कुछ सुहास बाकी है ।
आने की उनके कुछ आस बाकी है ॥
पीने दे साकी जी भर के मुझे ।
मेरी अभी आखिरी प्यास बाकी है ॥
धुंधले हो गये है यादों के रंग भी ।
ना इस जिंदगी मे कोई रास बाकी है ॥
आने की उनके उम्मीद है, इसलिए,
जीवन मे मेरे कुछ सांस बाकी है ॥
कुछ देर ठहरा लो जनाजे को मेरे ।
आने वाला अभी भी कोई खास बाकी है ॥

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

अभी तो आखिरी इम्तिहान बाकी है



अभी तो आखिरी इम्तिहान बाकी है ।
उनका अभी आखिरी सलाम बाकी है ॥
भूल गये है हम जब सारी खुदाई को ।
होठों पर अभी भी उनका नाम बाकी है ॥
नही आयेंगे वो मय्यत पे मेरी ।
उनका शायद कोई इन्तकाम बाकी है ॥
पीने-औ-पिलाने का दौर भी चलेगा ।
ठहर जाओ दोस्तों अभी शाम बाकी है ॥
एक प्याला डाल देना छुपा के दोस्तो ।
फ़कत अपना आखिरी इक जाम बाकी है ॥
चला जाऊं जिंदगी से दूर मै लेकिन ।
आना उनका आखिरी पैगाम बाकी है ॥
जब नवाजेंगे वो, रुसवाई से मुझे ।
पाना ये आखिरी इनाम बाकी है ॥
खंजर तो उठा लिया हाथों मे उन्होनें,
होना ‘तसव्वुर’ का कत्ले-आम बाकी है ॥

--अंकित कुमार 'तसव्वुर'

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

तुझे देखे बिना



तुझे देखे बिना आराम नही अरमानों को ।
हमने शाम-ओ-शहर तेरी ही चाहत की है ॥
और तो कुछ भी नही मांगा हमने रब से ।
बस तुझे पाने की ही इबादत की है ॥
तू नही मिली तो क्या हुआ ए जान-ए-तमन्ना,
हमने तो तेरी तस्वीर से भी मौहब्बत की है ।
रुसवा हो गया अंकित, जुदाई से तेरी ।
आखिर ये तुमने कैसी कयामत की है ॥

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

तुम्हारी मेरी भी इक कहानी बनी थी



तुम्हारी मेरी भी इक कहानी बनी थी ।
कुछ इस तरह से मेरी जिन्दगानी बनी थी ॥
जमाने की नज़रों मे आ गई थी तेरी अदाएं ।
उम्र के जिस पडाव पर तुम सयानी बनी थी ॥
खासमखास थे मेरे लिए, वो चंद लम्हे ।
जिस घडी तुम मेरी दीवानी बनी थी ॥
खुदा जाने क्या टूट गया था तेरे मेरे बीच ।
तेरी बेवफ़ाई मेरे प्यार की निशानी बनी थी ॥
हमारा फ़साना शहर में मशहूर हुआ कुछ ऐसा ।
कि मेरी दीवानगी लोगो की जुबानी बनी थी ॥

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

रुसवा हो गए वो जमाने मे ऐसे


रुसवा हो गए वो जमाने मे ऐसे ।
कि पलके झुकी तो फ़िर उठा ना सके ॥
दूर जाकर मुझसे, इम्तिहान ले रहे थे वो ।
चाहकर भी मुझे फ़िर पा ना सके ॥
कहते थे वो कि उन्हे दर्द नही होता । 
पर अश्को को अपने छुपा ना सके ॥
हम बने पत्थर उनकी जुदाई से ।
फ़िर कभी वो हमे रुला ना सके ॥
दिल जब टूटा, तो टुकडे हुए कुछ ऐसे ।
चाहकर भी वो उन्हे मिला ना सके ॥
आग जो लगी थी मेरे दिल के आंगन में ।
आंसुओ से अपने वो बुझा ना सके ॥
दिल से निकाला हमने उस बेवफ़ा को ऐसे ।
फ़िर वो मेरे दिल मे जगह बना ना सके ॥

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

किस से दिल लगाऊं



किस से दिल लगाऊं अब तेरे शहर में ।
हर किसी मे मुझे तेरा अक्स नजर आता है ॥
बढता जाता हूं मै उन अंजान राहों पर ।
जहां कोई तेरे जैसा शख्स नजर आता है ॥
कहता है बेवफ़ा तुझको ये जमाना, पर,
तुझमे नही कोई मुझे नुक्स नजर आता है ॥
जिन्दगानी तुम मेरी बन जाओगे कभी ।
नही ऐसा कोई मुझे पक्ष नजर आता है ॥
भूला गर तुझे तो मिट जाएगा अंकित ।
ना तेरे सिवा कोई मुझे लक्ष्य नजर आता है ॥

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012