गुनाह-ए-अज़ीम हो गई मौहब्बत अब तो ।
आने लगी है याद कयामत अब तो ।।
ना जाने किसके पहलू में छिपकर रोएंगे हम,
सारे शहर ने की है जलालत* अब तो ॥
आने लगी है याद कयामत अब तो ।।
ना जाने किसके पहलू में छिपकर रोएंगे हम,
सारे शहर ने की है जलालत* अब तो ॥
-----------------------
* जलालत = बेइज्ज़ती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें