मेरे अरमां दिल में रहे, पूरे ना हो सके
वो बदनुमा दाग कभी दिल से ना धो सके
तड़पते रहे दिल ही दिल में उन्हें देखकर
हम उनकी यादो में जी भर के ना रो सके
प्यार में दे देते हम, जान भी, मगर,
तेरे दिए गमों का बोझा हम ना ढो सके
ना जाना छोड़कर मुझे, इक बात मान ले
कहाँ से लाँऊ हौंसला कि तुझको खो सके
जागती आँखों से सपने देखने लगे
भूलकर फिर ख्वाब तेरा, हम ना सो सके
- अंकित कुमार 'नक्षत्र'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें