सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

वो सुहाने दिन[कहानी] (Part-4)

वो सुहाने दिन

[गतांक से आगे]


एक दिन ज़ब वो मुझसे मिली तो कुछ ज़्यादा ही चिंतित दिखाई दे रही थी। और ज़ो उसने बताया उसने मुझे भी चिंता मे डाल दिया। उसने मुझे बताया कि उसके घरवाले उसकी शादी की बात चला रहे है।
"मै तुम्हारे बिना नही रह पाउंगी विज़य" उसकी आवाज़ मे दर्द था और डर भी ज़िससे मै अंदर तक सिहर गया। मुझे समझ नही आ रहा था कि मै क्या करूं।
"तुमने क्या सोचा है?" मैने उसकी और देखा।
"मै मर ज़ाऊंगी लेकिन तुम्हारे सिवाय किसी और के बारे मे सोच भी नही सकती। तुम मेरा साथ दोगे ना विज़य"
मुझे चुप देखकर उसकी चिंता और बढ गई।
"क्या सोच रहे हो?"
"यही कि क्या किया जाये?"
"तुम मुझसे शादी कर लो। हम यहां से कहीं दूर चले ज़ायेंगे।"
"लेकिन हमारे घरवालो की कितनी बदनामी होगी"
"तुम मुझसे शादी करोगे या नही"
"मै अभी कुछ नही कह सकता।"
"क्यो? मुझसे प्यार नही करते हो।"
"लेकिन ……………"
"लेकिन-वेकिन कुछ नही, हां या ना"
"हां"
"मेरा साथ दोगे"
"किसलिये?"
"घर से भाग चलते है।"
"पागल हो गई हो क्या"
"हां, पागल ही समझो"
"ये मुझसे नही होगा"
"तो फ़िर क्या होगा तुमसे"
"मै घर से नही भाग सकता"
"तो फ़िर मुझे मार दो। तुम्हारे बिना जीने से तो मरना अच्छा है"
"पुष्पा, प्लीज़ ऐसे मत बोलो"
"तो क्या करू……………" वो अपनी बात पूरी नही कर पाई थी और रोते-रोते उसका गला रुंध गया।
"आई हेट टियर्स, पुष्पा "
ये सुनते ही वो हँस पडती थी। लेकिन आज़ तो हँसी हम दोनो के चेहरे से कोसो दूर थी।………………………………

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