शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

वो सुहाने दिन[कहानी] (Part-3)



वो सुहाने दिन

[गतांक से आगे]

उसके बाद यूं ही दिन गुज़रने लगे। हम लगभग रोज़ाना ही मिलते थे। रविवार का दिन बडी मुश्किल से कटता था। एक दिन उसने मुझसे पूछा -" क्या तुम मुझे पसंद करते हो?"मुझे सीधा-सीधा ज़वाब देने की आदत नही है। मैने कहा - " तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो।"
"ज़ितना पूछा उतना बताओ"
"हां" सक्षिप्त सा उत्तर दिया मैने।
"क्या हां"
"हां तुम मुझे पसंद हो।"
"सच बोल रहे हो?"
"क्या तुम सीरियस हो?"
"हां"
" आई लाइक यू"
"कितना?"
"तुम सोच भी नही सकती"
"क्या मै तुम पर यकीन कर सकती हूं"
"तुम इतना सीरियस क्यों हो आज़"
"बस ऐसे ही। कभी-कभी डर लगता है।"
"कैसा डर?"
"विज़य, तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे ना? छोड तो नही दोगे ना तुम मुझे"
"तुम्हे क्या लगता है?"
"मेरी छोडो। तुम अपनी बताओ"
"नही, कभी नही"
"और तुम"
"मै तो तुम्हारे बिना अपनी ज़िंदगी की कल्पना भी नही कर सकती।"
कभी-कभी वो अचानक ही सीरियस हो जाती थी। और इसी तरह बात करती थी।

ज़ब मै उसके साथ होता था तो टाइम का बिल्कुल भी ध्यान नही रहता था। और उसके बिना एक-एक पल वर्षो के समान लगता था। अब हम दोनो कभी-कभी कालेज़ बंक करके मूवी देखने चले जाते थे। हमे डर तो बहुत लगता था कि कहीं कोई जान-पहचान का ना मिल जाये। लेकिन छुपकर प्यार करने का मज़ा ही कुछ और है। और फ़िर इतना रिस्क तो लेना ही पडता है।…………………………………………………

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