गुरुवार, 13 नवंबर 2014

पत्तो पर ठहरी




पत्तो पर ठहरी
बरखा की बौछारों से
विचार आता
अभी गिर जाएंगी ये बूंदे
वृक्ष की हरियाली को अधिक नवीन बनाकर
कुछ इसी प्रकार
आँखों से गिरे आंसुओ से
संभव है
मन उनका हल्का हो जाये
हृदय की पीड़ा
लोचनो के मार्ग से
बह चले जीवन से दूर कही

-अंकित कुमार 


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