पत्तो पर ठहरी
बरखा की बौछारों से
विचार आता
अभी गिर जाएंगी ये बूंदे
वृक्ष की हरियाली को अधिक नवीन बनाकर
कुछ इसी प्रकार
आँखों से गिरे आंसुओ से
संभव है
मन उनका हल्का हो जाये
हृदय की पीड़ा
लोचनो के मार्ग से
बह चले जीवन से दूर कही
-अंकित कुमार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें