बुधवार, 12 मार्च 2014

कभी यादों से लडे



कभी यादों से लडे, कभी बातों से लडे ।
हम तेरी झूठी मुलाकातों से लडे ॥
दीदार तेरा करने की हमे चाहत थी इस कदर,
चेहरा तेरा ढकने वाले नकाबों से लडे ॥

कभी तेरी नफ़रत को भी सीने से लगा लेते थे,
आज तेरे प्यार भरे वादों से लडे ॥
कतरा-कतरा संभालकर जिन्हे संजोया था कभी,
पलकों पे रहने वाले उन ख्वाबों से लडे ॥

तुझे पाने की चाहत थी, तुझे अपना बनाना था,
यही सोचकर तेरे झूठे जवाबों से लडे ।
तेरी चाहत को ना समझा, ना समझा खुद को ही मैने,
इसी कशमकश में अपने इरादों से लडे ॥

कभी तेरे पहलू से छूटते नही थे हम ,
आज तन्हा होकर, तन्हा रातों से लडे ॥
नज़रे कभी नज़रों से थी हटती नही 'नक्षत्र'
आज चुप रहकर भी हम आंखों से लडे ॥
-अंकित कुमार 'नक्षत्र'

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