गुरुवार, 1 सितंबर 2011

स्वीटी : A memory

प्रिय स्वीटी,
मै तुम्हे तब से प्यार करता हूं ज़ब मैने तुम्हे पहली बार देखा था और देखकर यही सोचा था कि

"मेरे सुकूने-दिल को तो होना ही था तबाह
उनकी भी एक निगाह का नुकसान हो गया "

तुम्हे देखकर ऐसा लगा था कि यही है वो ज़िसकी मुझे तलाश थी । शायद आज़ मेरी तलाश पूरी हो गई । लेकिन वो शायद , शायद ही रह गया ।
तुम्हे याद है एक बार तुमने कहा था कि तुम मुझसे इतना प्यार क्यो करते हो विज़य ? ज़बाब नही मिल रहा था मुझे । और कुछ सवाल ऐसे होते है ज़िनका ज़बाब हमे खुद भी पता नही होता । तुम्हारा सवाल भी कुछ ऐसा ही था । मैने पहली बार सोचा कि आखिर मै तुमसे इतना प्यार करता क्यो हूं ? ज़बाब है कि बस प्यार करता हूं । क्यों करता हूं ये तो मै भी नही ज़ानता लेकिन ये ज़रूर ज़ानता हूं कि बेइंतहा प्यार करता हूं ।
और तुम मेरे करीब, इतने करीब आती गई कि मै सोचने पर मज़बूर हो गया कि

"लाऊंगा कहा से जुदाई का हौंसला
क्यों इस कदर क़रीब मेरे आ रही हो तुम "

बेइंतहा प्यार करता था मै तुमसे, ये ज़ानते हुए भी कि तुम मेरी ज़िंदगी में कभी नही आओगी । लेकिन दिल नही मानता था । बस ऐसा लगता था कि मेरे प्यार को देखकर तुम सब मज़बूरियां भूल ज़ाओगी और मेरे पास आकर कहोगी ,"मै भी तुमसे प्यार करती हूं विजय " लेकिन ऐसा कभी हुआ नही ।
ये तो मै अभी भी मानता हूं कि तुमने मुझे धोखा नही दिया । क्योकि धोखा तो अपने देते है और

" जिसका कोई हो ही ना वो धोखा किससे खायेगा "

हंसने-मुस्कुराने की तो आदत रही है हमारी। लोग तो हमारी हंसी से भी धोखा खा ज़ाते है लेकिन

" खुशी ही हो हर गम के पीछे ये ज़रूरी तो नही
कभी-कभी गम भी बन ज़ाता है मुस्कुराने की वज़ह "

-तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा विजय

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